ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी से मनुष्य को अपार धन की प्राप्ति होती है तथा जीव के सभी प्रकार के पापों का नाश भी हो जाता है, इसीलिए यह एकादशी अपरा नाम से प्रसिद्ध है।इस बार ये एकादशी व्रत 26 मई को है। भगवान को एकादशी तिथि परम प्रिय है, तभी तो एकादशी व्रत का पालन करने वाले भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा सदा बनी रहती है। इसी दिन कपूरथला में मां भद्रकाली (काली माता) का विशाल ऐतिहासिक मेला भी लगता है तथा इस एकादशी को भद्रकाली एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।

Apara ekadashi Vrat vidhi क्या और कैसे करें व्रत?
एकादशी से पूर्व दशमीं यानि 26 मई को भगवान विष्णु जी का ध्यान करते हुए एकादशी व्रत करने का पहले मन में संकल्प करना चाहिए। प्रात: सूर्य निकलने से पूर्व उठकर स्नान आदि क्रियाओं से निवृत होकर भगवान के वामन अवतार और भगवान विष्णु जी का धूप, दीप, नेवैद्य और श्वेत पुष्पों से पूजन करते हुए उन्हें मौसम के फलों का भोग लगाएं। आम, खरबूजा, आडू, खुरमानी, अलीची, लोगाठ, केले का भोग लगाना अति उत्तम है। स्वयं उपवास करें तथा फलों का यथासम्भव दान करते हुए आप भी फलाहार करें। रात्रि को प्रभु नाम का संकीर्तन करते हुए प्रभु का जागरण करें। व्रत में रात को प्रभु नाम संकीर्तन की अत्याधिक महिमा है। द्वादशी को स्नान आदि करके ब्राह्मणों को यथाशक्ति दान व दक्षिणा आदि देकर स्वयं भोजन करने से व्रत सम्पन्न होता है तथा व्रत का पुण्यफल प्राप्त होता है।

Apara Ekadashi Mahatva क्या है पुण्यफल?
अपरा एकादशी का व्रत करने वाला मनुष्य अपार धन का स्वामी बनता है तथा उसे कभी किसी प्रकार के धन की कमीं नहीं रहती। अत्यधिक दान आदि पुण्य कर्म करने पर उसकी कीर्ति एवं यश फैलता है। ब्रह्मपुराण के अनुसार, यह एकादशी व्रत महापाप का नाश करने वाली एवं अनन्त फलदायक है तथा भूत-प्रेत जैसी निकृष्ट योनियों से जहां जीव को मुक्ति प्रदान करता है वहीं ब्रह्म हत्या, गोहत्या, भ्रूण हत्या, झूठ बोलना, झूठी गवाही देना, किसी की झूठी प्रशंसा करना, कम तोलना, वेद पढ़ने व पढ़ाने के नाम पर दूसरों को ठगना, गलत बातों का प्रचार करने वाला, क्षत्रीय धर्म का पालन न करने वाला अर्थात युद्घ में पीठ दिखाकर भागने वाला नरकगामीं मनुष्य भी सभी पापों से मुक्त हो जाता है। यह व्रत पाप रूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी तथा पुण्यकर्मों की प्राप्ति के लिए किसी कल्पवृक्ष से कम नहीं है। पदमपुराण के अनुसार कार्तिक मास में स्नान करने, माघ मास में सूर्य के मकर राशि पर आने से प्रयागराज में स्नान करने, बृहस्पति के सिंह राशि पर स्थित होने पर गोदावरी में स्नान करने, सूर्यग्रहण में कुरुक्षेत्र में स्नान करने, काशी में शिवरात्रि का व्रत करने, गया जी में पिण्डदान करके पितरों को तृप्ति प्रदान करने, बदरिकाश्रम की यात्रा में भगवान केदारनाथ जी के दर्शन करने तथा किसी भी समय हाथी, घोड़े, स्वर्ण, अन्न तथा गोदान आदि करने से जो पुण्य मिलता है वही फल एकादशी का एकमात्र व्रत करने से सहज ही प्राप्त हो जाता है। एकादशी की कथा, पढ़ने और सुनने से भी जीव को लाभ होता है।

एकादशी भक्ति की जननी है, उनके आशीर्वाद से जैसे सभी प्रकार के सुख बालक को प्राप्त होते हैं वैसे ही एकादशी व्रत के पालन से मनुष्य को पुण्यफल की प्राप्ति होती है तथा जिस कामना से कोई व्रत करता है वह भी अवश्य पूरी हो जाती है।