ब्रह्मांड में ऊर्जा का अप्रतिम स्रोत सूर्य ही है अत: समस्त विश्व का आधार सूर्य है। सोचने-समझने एवं क्रिया करने की शक्ति प्रदान करता है। अगर किसी प्रकार मनुष्य सूर्य से सीधा संबंध स्थापित करके उसकी शक्ति को अपने भीतर भरने की साधना कर सके तो नि:संदेह उसका शरीर क्रमश: रूपांतरित होते हुए दिव्यता की उस स्थिति को प्राप्त कर लेगा, जहां काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, रोग, मृत्यु आदि का भय नहीं रहता। सूर्य साधना से लाभ उठाने के लिए सूर्य में पूर्ण श्रद्धा और साधना में विश्वास की आवश्यकता है। नेत्र के रोगी, निर्बल दृष्टि में सुधार तथा मस्तिष्क शोधन, पेट के रोगों आदि से छुटकारा, कान, नाक, गले आदि की समस्याओं तथा त्वचा रोगों में सुधार, माइग्रेन, डिप्रैशन, तनाव, अनिद्रा का निवारण, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह के रोगों से लाभ प्राप्त होता है।

धर्मशास्त्रों में रोग निवृत्ति के लिए सूर्य की पूजा, सूर्य उपवास और सूर्य नमस्कार के प्रयोग दिए गए हैं। सूर्य नमस्कार के लिए रवि का ध्यान करें और उनके नामों को लेते हुए नमस्कार करें :
ॐ मित्राय नम:, ॐ सूर्याय नम:
ॐ खगाय नम:, ॐ हिरण्य गर्भाय नम:।
ॐ आदित्याय नम:, ॐ अर्काय नम:।
ॐ रवये नम:, ॐ मानवे नम:
ॐ पूष्णे नम:, ॐ मरीचये नम:
ॐ सावित्रे नम:, ॐ भास्कराय नम:।

कर्म के साक्षी अरुण हैं अत: उन्हें नमस्कार करना चाहिए। अरुण विनता के पुत्र हैं, कर्म के साक्षी हैं, सात घोड़ों को सात लगामों से पकड़े हैं, इससे वह प्रसन्न होते हैं।

बारह सूर्य
अंशुमान, अर्यमन, इंद्र, त्वष्टा, धातु, पर्जन्य, पूषन, भग, मित्र, वरुण, वैवस्वत्, विष्णु।

सूर्य का परिचय
श्री मद्भागवत के अनुसार पृथ्वी और स्वर्ग के मध्य ब्रह्मांड के केंद्र स्थान में सूर्य स्थित है। सूर्य के द्वारा ही भूलोक, आकाश, स्वर्गलोक, दिशा, रसातल, अंतरिक्ष लोक, नरक तथा अन्य लोक एक-दूसरे से विभाजित होते हैं।

सूर्य के नाम : आदित्य, रवि, अर्क, मार्तंड, भानुमान, भास्कर, दिनकर, तरणि, भानु, प्रभाकर, अर्हस्कर, दिनेश, सविता, हेली, पूषन, अर्यमा आदि।

नवग्रहों में सूर्य को राजा का स्थान प्राप्त है। यह अग्नि तत्व प्रधान, पित्त प्रकृति वाला ग्रह है। सूर्य आत्मा के साथ नेत्रों व पिता का भी कारक है। शरीर में यह अस्थियों में दृढ़ता या क्षीणता का कारक है। इससे मंदाग्नि, नेत्र ज्योति, ताप प्रधान रोग, सिरदर्द और पाचन संस्थान आदि का विचार किया जाता है।

यह सिंह राशि का स्वामी है। सिंह राशि के बीस अंश तक स्वगृही रहता है। मेष राशि के दस अंशों तक यह उच्च कहलाता है।
तुला राशि में सूर्य नीच का होता है और दस अंश तक परम नीच कहलाता है।

सूर्य प्रधान जातक प्रभावशाली और आकर्षक, क्रोधी, आत्मविश्वासी व बहादुर होता है। सूर्य उच्च (मेष राशि) का होने पर जातक राज्य कार्य में प्रमुख पद पाता है।

स्वगृही होने पर जातक उग्र प्रकृति, स्वच्छंदकारी, आकर्षक व्यक्तित्व और व्यभिचारी होता है।

मूल त्रिकोण में होने पर सूर्य जातक को सामाजिक प्रतिष्ठा प्रदान करवाता है। मित्र गृही होने पर मित्रों की संख्या अधिक होती है और शत्रुगृही होने पर नौकरी करने वाला, पिता के स्नेह से वंचित होता है। नीच राशि में होने पर सूर्य जातक को सेवक बनाता है।