बीजिंग । ताइवान और चीन के बीच हमेशा तनाव का माहौल रहा है, बीते कुछ सालों में इसमें इजाफा हुआ है। एक ओर अमेरिका ताइवान की संप्रभुता की रक्षा करने का दावा करता रहा है, तब वहीं चीन अमेरिका को आग से दूर रहने की सलाह देता रहा है। लेकिन अब तस्वीर बदलती दिख रही है। ताइवान के पूर्व राष्ट्रपति मा यिंग-जिउ इस महीने चीन की यात्रा करने वाले हैं। 1949 के बाद यह पहला मौका है, जब ताइवान का कोई मौजूदा या पूर्व राष्ट्राध्यक्ष चीन का दौरा करने वाला है। 1949 में छिड़े सिविल वॉर के दौरान कम्युनिस्ट पार्टी के हाथों सत्ता गंवाने के बाद रिपब्लिक ऑफ चाइना की सरकार ताइवान शिफ्ट हो गई थी।
तब से ही ताइवान में रिपब्लिक ऑफ चाइना की सरकार चलती रही है, और इस द्वीप पर अपनी संप्रभु सत्ता चलाता रहा है। इसी को लेकर विवाद है और चीन का कहना है कि ताइवान उसका ही हिस्सा है, जिस वह मेनलैंड में शामिल करके रहेगा। भले ही इसके लिए सशस्त्र संघर्ष ही क्यों ना करना पड़े। बीजिंग और ताइपे के बीच बढ़े तनाव के दौरान मा यिंग-जिउ का यह दौरा बेहद अहम है। दरअसल बीते साल अमेरिकी संसद की स्पीकर नैन्सी पेलोसी ने ताइवान का दौरा किया था। इस पर चीन लाल हो गया था और ताइवान की सीमा पर जमकर शक्ति प्रदर्शन किया था। 
चीन की ओर से ताइवान के विलय के लिए सेना के इस्तेमाल से कभी भी इनकार नहीं किया गया। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने कहा कि हम मा यिंग जिउ के दौरे का स्वागत करते हैं। बयान में कहा गया कि अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने के लिए जिउ दौरे पर आ रहे हैं। इसके अलावा वह चीनी सरकार के प्रतिनिधियों से संवाद भी करने वाले हैं। हालांकि अब तक यह स्पष्ट नहीं है कि मा यिंग जिउ चीन के शीर्ष नेतृत्व के किसी नेता से मुलाकात करने वाले हैं, या नहीं। फिलहाल यह भी स्पष्ट नहीं है कि ताइवान के पूर्व राष्ट्रपति बीजिंग के दौरे पर जाएंगे या नहीं।
एक्सपर्ट्स मानते हैं कि यदि चीन और ताइवान के बीच सहमति बनती है, तब इससे समीकरण बदल सकते हैं। अब तक ताइवान का साथ देने की बात कर चीन को अमेरिका चिढ़ाता रहा है। इसके बाद यदि ताइवान के साथ चीन कोई समझौता करने में सफल होता है या फिर शांति बहाल होती है, तब अमेरिका को वह ताइवान की खाड़ी से दूर रखने में सफल होगा।