भोपाल ।  एंटीबायोटिक दवाओं का असर कम होने से स्वास्थ्य विभाग की चिंता बढ़ गई है। सरकार अब नीति में संशोधन करने जा रही है। इसमें यह प्रविधान किया जा रहा है कि निजी अस्पतालों और लैब को बताना होगा कि उनके यहां आने वाले मरीजों को दी गईं एंटीबायोटिक दवाएं किन बैक्टिरिया पर बेअसर साबित हो रही हैं। एम्स और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन नीति बनाने को लेकर काम कर रहे हैं। साथ ही सरकारी अस्पतालों के डाक्टरों को यह जिम्मेदारी दी जाएगी कि वे मरीजों को एंटीबायोटिक दवाओं के सेवन के संबंध में जागरूक करें। दरअसल, मरीज दवाओं का मापदंड के अनुसार सेवन नहीं करते हैं जिससे अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं होते हैं। एंटीबायोटिक दवाएं निष्प्रभावी होने को लेकर एम्स में पिछले सप्ताह आयोजित एक कार्यशाला में भी विशेषज्ञों ने इस तरह के सुझाव दिए थे। प्रदेश में एंटीबायोटिक नीति बनाने वाला केरल के बाद मध्य प्रदेश दूसरा राज्य है। अब इस नीति में बदलाव की तैयारी है। इस पर जोर दिया जाएगा कि संक्रमण के उपचार के लिए कोई भी एंटीबायोटिक देने के पहले कल्चर टेस्ट कराया जाए। इसमें यह पता चलता है कि कौन से बैक्टीरिया पर दवा प्रभावी है और किस पर नहीं। जो दवा प्रभावी होगी वही दी जाएगी, जिससे मरीज बेअसर दवाएं खाने से बच जाएंगे। साथ ही सभी अस्पतालों को कल्चर टेस्ट रिपोर्ट स्वास्थ्य विभाग को साझा करनी होगी। सभी जगह से मिली रिपोर्ट को एकत्र कर विश्लेषण किया जाएगा कि कौन सी एंटीबायोटिक का असर कितना कम हुआ है। इसी के आधार पर सरकारी और निजी डाक्टरोें के लिए दिशा-निर्देश तैयार किए जाएंगे कि किस बीमारी में कौन सी एंटीबायोटिक सबसे पहले दी जानी चाहिए।

इनका कहना है

एंटीबायोटिक दवाओं का सही उपयोग नहीं होने से वह बेअसर होती जा रही हैं। यह पूरी दुनिया के सामने बड़ी चुनौती है। अब जरूरत इस बात की है कि सभी जिला अस्पतालों में एंटीबायोटिक दवाएं देने की पहले कल्चर टेस्ट कराया जाए। इस जांच के लिए माइक्रोबायोलाजिस्ट नियुक्त किए जाने चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पहले ही एक पोर्टल पर बनाकर कच्लर रिपोर्ट की जानकारी साझा करने को कहा है, पर इसका पालन नहीं हो रहा है।

डा.पंकज शुक्ला, पूर्व संचालक, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन