आज हमारी आजादी के 75 वर्ष हो गए और हम अमृत महोत्सव भी मना रहे हैं पर क्या हम सचमुच आजाद हो गए हैं ? यह बड़ा सवाल है। यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि हम आजाद होकर भी असल में आजाद ही नहीं हो पाए। हमारे आसपास गरीबी, बेरोजगारी, अराजकता, भ्रष्टाचार, भाई भतीजावाद, जातिवाद, धार्मिक उन्माद इस कदर फैला हुआ है कि आजाद होने का भी कोई मतलब नजर नहीं आता। पूरा सिस्टम जकड़ा हुआ नज़र आता है।

आम आदमी के लिए आजादी का मतलब बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य रोजगार नहीं है। आजादी का मतलब एक तरह की स्वच्छन्दता है। जिसमें हम नियमों को तोड़, कानून को ताक पर रखें, लापरवाही करें, मनमानी करें, अपनी जिम्मेदारी को न समझें। इसलिए देश में अब फिर आजादी की जरूरत है। आजादी इस बात के लिए चाहिए कि हम एक अच्छे नागरिक साबित हों। हम एक अच्छे मतदाता साबित हों। हम कम से कम मतदान में तो अपना छोटा-मोटा लालच ताक पर रखें। अपना वोट न बेचें।

आजादी के 75 वर्ष बाद भी हमें जरूरत है असली आजादी की जिसमें मुंहजोर नौकरशाही न हो और सत्तालोलुप राजनीति न हो। हमें एक ऐसी आजादी की जरूरत है। जिसमें सभी नागरिकों को समान रूप से सभी संसाधनों में भागीदारी मिलती हो। जहां जातपाँत के आधार पर तुष्टिकरण न होता हो। समाज के अंतिम छोर के व्यक्ति के लिए भी हर जगह वही अवसर उपलब्ध हो जो प्रथम पंक्ति में खड़े व्यक्ति के लिए है।

हमारे यहां के मीडिया को इतनी आजादी हो कि वह बिना प्रलोभन और डर के सवाल खड़े करना जानता हो। हमारी न्यायपालिका इतनी मजबूत हो कि उस पर किसी को ऊंगली उठाने की जरूरत ही न पड़े। सबसे बड़ी बात यह है कि हम इतने जागरूक और कर्तव्य परायण हो कि कुछ भी गलत हो तो हम मुखर नजर आए। हमें यह नहीं लगे कि इससे मेरा क्या लेना देना है।

इसलिए आजादी के अमृत महोत्सव पर मैं आव्हान करता हूं  - आओ हम फिर आजाद हो जाएँ।