आए दिन देश के विभिन्न हिस्सों से खबर आ रही है की तमाम ऐसे लोग जो कि साधना को मनोरंजन का माध्यम मानते हैं , वे गरबा पंडालों में घुसकर फोटोग्राफी वीडियोग्राफी आदि कर रहे हैं अथवा झूठी आईडी दिखाकर गरबा पंडालों में घुसने का प्रयास करते हैं अथवा कई बार प्रयास में सफल भी हो जाते हैं मैं इस लेख के माध्यम से आपको गरबा नृत्य और मां दुर्गा की साधना के महत्व की आपसी कड़ी बताना चाहता हूं।

नवरात्रि के दौरान देश के कई शहरों में शाम के समय गरबा के जरिए मां दुर्गा की उपासना की जाती है।
धार्मिक मान्यता है कि मा दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था. कहा जाता है कि महिषासुर के अत्याचारों के मुक्ति मिलने पर लोगों ने नृत्य किया जिसे गरबा नाम दिया गया।। माना जाता है कि मां दुर्गा को यह नृत्य बेहद प्रिय है।

गरबा गुजरात का पारंपरिक लोक नृत्य है, जिसे मंगल व सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। शास्त्रों में नृत्य को साधना का एक मार्ग बताया है। गरबा का शाब्दिक अर्थ है गर्भ दीप। गर्भ दीप दरअसल स्त्री के गर्भ की सृजन शक्ति का प्रतीक माना गया है और गरबा के माध्यम से इस शक्ति की पूजा की जाती है। गरबा करते समय नृत्य करने वाले गोले में नृत्य करते हैं, गोल घेरे में किए जाने वाला गरबा जीवन के गोल चक्र का प्रतीक है। इसमें महिला, पुरुष, बच्चे सभी शामिल होते हैं। जहां गरबा करते हैं, उसके केंद्र में कच्ची मिट्टी के छेदयुक्त घड़ा रखा जाता है, जिसमें दीप प्रज्वलित किया जाता है। इसको गरबो कहा जाता है। इसके बाद माता का आह्वान किया जाता है और फिर नृत्य करते हैं।
गरबा खेलते समय आपने देखा होगा कि महिलाएं तीन तालियों का प्रयोग करती हैं। दरअसल ये तीन तालियां त्रिदेव को समर्पित होती हैं। पहली ब्रह्माजी, दूसरी भगवान विष्णु और तीसरी महादेव का प्रतीक हैं। तीन तालियां बजाकर तीनों देवताओं को आह्वान किया जाता है। गरबा के नृत्य में जो ध्वनि से जो तेज प्रकट होता है और तरंगे निकलती हैं, उससे मां अंबे जागृत होती हैं।
 नवरात्र की रात्रि को गरबा की स्थापना होती है। फिर उसमें चार ज्योतियां प्रज्वलित की जाती हैं और फिर उसके चारों ओर ताली बजाती फेरे लगाती हैं।
आरंभ में देवी के निकट सछिद्र घट में दीप ले जाने के क्रम में यह नृत्य होता था। इस प्रकार यह घट दीपगर्भ कहलाता था। वर्णलोप से यही शब्द गरबा बन गया। आजकल गुजरात में नवरात्रों के दिनों में लड़कियाँ कच्चे मिट्टी के सछिद्र घड़े को फूलपत्तियों से सजाकर उसके चारों ओर नृत्य करती हैं।

गरबा सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है और अश्विन मास की नवरात्रों को गरबा नृत्योत्सव के रूप में मनाया जाता है। नवरात्रों की पहली रात्रि को गरबा की स्थापना होती है। फिर उसमें चार ज्योतियाँ प्रज्वलित की जाती हें। फिर उसके चारों ओर ताली बजाती फेरे लगाती हैं।

गरबा नृत्य में ताली, चुटकी, खंजरी, डंडा, मंजीरा आदि का ताल देने के लिए प्रयोग होता हैं तथा स्त्रियाँ दो अथवा चार के समूह में मिलकर विभिन्न प्रकार से आवर्तन करती हैं और देवी के गीत अथवा कृष्णलीला संबंधी गीत गाती हैं। शाक्त-शैव समाज के ये गीत गरबा और वैष्णव अर्थात्‌ राधा कृष्ण के वर्णनवाले गीत गरबा कहे जाते हैं।

अंत में मैं अपने इस लेख के माध्यम से आपको पुनः निवेदन करता हूं कि गरबा मनोरंजन का माध्यम नहीं है गरबा मनोरंजन का साधन नहीं है गरबा मां दुर्गा की आराधना और साधना के लिए बनाया गया एक नियम है जिसमें नृत्य के माध्यम से मां दुर्गा की साधना और आराधना की तीन ताली बजाई जाती है। नृत्य साधना का उल्लेख शास्त्रों में भी आया है।
...🖊️ डा. राहुल श्रीवास्तव 


                                   जय जगदम्बा।
                                      जय भवानी।