(बैतूल) पंचायती राज में टारगेट के लिए मैदानी अमले पर दबाव की रणनीति,
- शोकाज नोटिस में संतोषजनक कारण न बताने पर चार उपयंत्री को चेतावनी पत्र
बैतूल(ईएमएस)/नवल-वर्मा । वर्तमान में जिले में पंचायती राज का कामकाज, समीक्षा बैठक और चेतावनी, शोकाज नोटिस जैसी व्यवस्थाओं से चल रहा है। इसके बाद भी लेबर नियोजन में कोई खास बढ़ोत्तरी नहीं हो रही है। तमाम प्रयास के बाद भी 35, 40 हजार से अधिक लेबर मनरेगा में जिले भर में चल रहे है। दिसम्बर माह में जिला पंचायत सीईओ अभिलाष मिश्रा ने लगातार बैठके भी की और समीक्षा की थी। जिसमें 17 दिसम्बर को सांध्यकालीन बैठक के बाद उन्होंने जनपद बैतूल के चार उपयंत्रियों को शोकाज नोटिस जारी किए थे। इसमें उनसे जवाब मांगा गया था अब इन उपयंत्रियों को जवाब संतोषजनक न होने पर चेतावनी पत्र जारी किया गया है। वजह यह बताई गई कि उन्हें शोकाज नोटिस इसलिए दिया गया था कि लेबर बजट और लेबर नियोजन में इन उपयंत्रियों का काम संतोषजनक नहीं था। अब इन्हें संतोषजनक जवाब देने के लिए जिला पंचायत से चेतावनी पत्र भी जारी हो गया है।

- इन चार को मिला था नोटिस...
बैतूल जनपद के चार उपयंत्रियों को शोकाज नोटिस दिया गया था जिसमें शरद कोड़ले, लोकेश कारपेंटर, प्रशांत गायकवाड़ और अंजली देवकटे शामिल है। जिसमें उनसे सात दिन में जवाब मांगा गया था।

- उपयंत्री बेले को पड़ी थी डाँट...
इसी बैठक में जिला पंचायत सीईओ ने बैतूल जनपद में पदस्थ उपयंत्री रमेश बेले को तबादला होने के बाद भी भीमपुर में ज्वाईन करने को लेकर डाट लगाई थी। अभी भी बेले बैतूल जनपद में ही है।

- जीआरएस-सचिव को चेतावनी...
जिला पंचायत सीईओ ने दिसम्बर माह की इस बैठक में जब रोजगार सहायक और सचिवों की समीक्षा की तो उन्होंने उन्हें चेतावनी दी थी और 4 दिन की मोहलत देकर पेडिंग पूरा करने के लिए कहा था।

- मजदूरी के रेट है बड़ी समस्या...
मनरेगा में मजदूर ना मिलना इसलिए बड़ी समस्या हो गया है कि मनरेगा के जो रेट है वो कलेक्ट्रेट रेट से भी कम है और वर्तमान में जो अन्य मजदूरी की बाजार में दर चल रही है उससे बहुत कम है।

- भुगतान भी है एक बड़ी समस्या...
मनरेगा में मजदूरी करने के बाद उसका भुगतान एक हफ्ते के अंदर हो जाना चाहिए पर ऐसा होता नही है अब जो नया फार्मेट है इसमें ओबीसी जनरल का भुगतान महीनों लटकता है। इसलिए मोह भंग हो रहा।
सामग्री का भुगतान भी समस्या
मनरेगा में सामग्री का भुगतान लंबे समय से लटका हुआ है। सामग्री का भुगतान न होने से निर्माण कार्य प्रभावित होते है। जब काम ही रूका रहेगा तो ऐसे में मजदूर लगाना मुश्किल हो जाता है।

- मनरेगा को अब अफसरों ने टारगेटबेस बना दिया ... अकील अहमद का कहना है कि मनरेगा असल में डिमांड बेस योजना है, लेकिन इसे अधिकारियों ने अपना परफारमेंस दिखाने के लिए टारगेट बेस बना दिया।

- मनरेगा को अब अफसरों ने टारगेट बेस बना दिया...
रवि त्रिपाठी का कहना है कि मैदानी अमले पर दबाव बनाकर टारगेट हासिल करने के खामियाजे बाद में सरपंच, सचिव, उपयंत्री आदि रिकवरी के रूप में भुगतते हैं।
नवल-वर्मा-ईएमएस-बैतूल 25 फरवरी 2022