(बैतूल) मिशन स्कूल के जमीन घोटाले में सुरेन्द्र सुक्का और जार्ज थामस के खिलाफ धारा 406 में एफआईआर ,
- हेडलाईन, राष्ट्रीय-दिव्य-दुनिया ने अक्टूबर माह में ही मुहिम चलाकर इस मामले का किया था खुलासा
बैतूल(हेडलाईन)/नवल-वर्मा । ईएलसी के कोठीबाजार दुर्गा मंदिर चौक स्थित मिशन स्कूल की जमीन खरीद फरोख्त के मामले में बैतूल कोतवाली में दो आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई है। यह एफआईआर सलील लारेंस पिता केसी लारेंस उम्र 60 वर्ष निवासी नागपुर के शिकायत आवेदन पर हुई है। पुलिस ने मामले में सुरेन्द्र सुक्का पिता जोसेफ सुक्का एवं रेव्ह जार्ज थामस, विश्वास वल्द धीक्का निवासी पाढर अस्पताल घोड़ाडोंगरी के खिलाफ धारा 406, 34 के तहत मामला पंजीबद्ध किया है। यह मामला ईएलसी चर्च इन मप्र संस्था को छल करने के उद्देश्य से संस्था की संपत्ति बेचकर  मिली हुई राशि का कपटपूर्वक अनुचित लाभ लेने के मामले में दर्ज की गई है। जो शिकायत दर्ज हुई है उसके अनुसार उक्त आरोपियों ने यह संपत्ति अनूप पिता महावीर प्रसाद अग्रवाल घोड़ाडोंगरी के नाम रजिस्ट्री की थी। जो शिकायत की गई है उसके अनुसार कि ईएलसी मप्र धार्मिक संस्था चैरीटेबल सोसायटी छिंदवाड़ा द्वारा प्रतिफल राशि 50 लाख रूपये में विक्रय प्रतिफल प्राप्त कर बेच दी गई। जो भी राशि दी गई उसका चेक से भी भुगतान किया गया। इस मामले में सबसे पहले अक्टूबर माह में ईएमएस, हेडलाईन, राष्ट्रीय-दिव्य-दुनिया  बैतूल ने ही लगातार खबरें प्रकाशित कर खुलासा किया था और उसके बाद ही मामले को लेकर हर स्तर पर हल्ला मचा और स्थिति अब एफआईआर तक आ गई है। बैतूल जिले में ईएलसी की संपत्ति की खरीद फरोख्त को लेकर काफी हायतौबा मची हुई है। तरह-तरह के अभी भी आरोप लग रहे है।

- यह है मामला...
शहर के सबसे व्यस्त इलाके में शिक्षामद के लिए ईएलसी संस्थान को नजूल की जमीन दी गई। जहाँ पर एक मिशन स्कूल के नाम से शिक्षा संस्था संचालित थी, लेकिन अचानक इस स्कूल की जमीन पर व्यवसायिक काम्पलेक्स बना दिया गया और इसकी खरीद फरोख्त का खेल चालू हो गया। इस खेल के बाद कई तरह के सवाल खड़े हो गए थे।

- यह है आईपीसी धारा 406 ...
यदि कोई व्यक्ति ने किसी दूसरे व्यक्ति को विश्वास,भरोसे पे संपत्ति दी है और उस दूसरे व्यक्ति ने उस संपत्ति का ग़लत इस्तेमाल किया किसी अन्य व्यक्ति को बेच दिया। पहले व्यक्ति के माँगने पर नही लौटाया, तो वह विश्वास के आपराधिक हनन का दोषी होगा और उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास जिसे तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या आर्थिक दंड, या दोनों से दंडित किया जाएगा। यह एक गैर-जमानती, संज्ञेय अपराध है और प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है। यह अपराध न्यायालय की अनुमति से पीडि़त व्यक्ति (संपत्ति के मालिक जिसका विश्वास भंग हुआ है) के द्वारा समझौता करने योग्य है।
नवल-वर्मा-हेडलाईन-बैतूल 25 अप्रैल 2022