बैतूल(हेडलाईन)/नवल-वर्मा । पाथाखेड़ा राजीव तिगड्डा स्थित शराब दुकान सिस्टम को बेनकाब कर रही है। वजह यह है कि इस शराब दुकान को लेकर जहां वन विभाग पहले भी पीओआर फाड़कर साबित कर चुका है कि वन भूमि और वन कानून का उल्लंघन है। वहीं न्यायालय ने जुर्माना कर वन विभाग की कार्रवाई को जायज ठहरा दिया था। अब इसके बाद भी सिस्टम इस दुकान को यथावत बनाएं रखने के लिए ऐसे पेंच लगा रहा है कि जिससे दुकान हटाने में तमाम तरह के विवाद खड़े हो जाएँ? सबसे बड़ी बात यह है कि वन विभाग और डब्ल्यूसीएल के तथ्य और जांच को दरकिनार कर अब राजस्व और वन विभाग की संयुक्त जांच का नया पेंच लगा दिया गया है! अब सवाल यह है कि यह जांच कब होगी और कितने दिन में होगी? तब तक क्या शराब दुकान वहां यथावत रहेगी? यदि उक्त जांच में भी वन भूमि पाई गई तो इसके लिए जिम्मेदार कौन माना जाएगा? एक शराब दुकान को बचाने के लिए सिस्टम क्यों लगभग 92 अन्य अतिक्रमण का मामला उठाकर क्यों नए विवाद को जन्म दिया जा रहा है? क्या लिकर माफिया जो दावा करते हैं क्या सचमुच सही है कि उनके लिफाफे में बहुत दम है?

फैक्ट चैक : मामले को लेकर कलेक्टर के तर्क और दस्तावेजी फैक्ट...
कलेक्टर का तर्क : 2011 में तात्कालीन कलेक्टर ने वहां पर शराब दुकान खोले जाने की अनुमति दी थी। इसे नकार नहीं सकते।
दस्तावेजी फैक्ट:- तात्कालीन कलेक्टर ने डब्ल्यूसीएल की जमीन के आधार पर अनुमति दी थी पर अब जबकि डब्ल्यूसीएल लिखकर दे चुका है कि उक्त जमीन उसकी नहीं है।
कलेक्टर का तर्क : हमने वन विभाग से जानकारी मांगी है कि किस रिकार्ड के आधार पर उक्त दुकान को वन भूमि पर अतिक्रमण माना है।
दस्तावेजी फैक्ट : वन भूमि होने के कारण ही न्यायालय ने उक्त दुकान संचालक तूफान यादव और तात्कालीन ठेकेदार बानसिंह पर जुर्माना भी किया था।
कलेक्टर का तर्क: नक्शा और सीमांकन रिपोर्ट की जानकारी बुलाई गई है। एसडीएम से भी इस संबंध में रिपोर्ट मांगी है। 
दस्तावेजी फैक्ट: 2012 में वन विभाग वहां पर पीओआर फाड़कर वन अपराध दर्ज कर चुका है। क्या वन विभाग की उक्त कार्रवाई अवैध थी।
कलेक्टर का तर्क: वहां पर अन्य लगभग 92 अतिक्रमण भी है। शराब दुकान किराए के भवन में है। यदि वन भूमि पाई गई तो शिफ्ट कर लेंगे।
दस्तावेजी फैक्ट: वहां अन्य अतिक्रमण है। इसकी अभी भी क्यों जांच नहीं करवाई गई। आखिर मसला केवल शराब दुकान का है और वह जांच में वन भूमि पर पाई जा रही है तो सर्वप्रथम उस पर कार्रवाई क्यों नहीं?

- इधर...प्रशासन के ऐसे ही टालू रवैये की वजह से एक प्रसूता की जान चली गई ...
- शराब दुकान मामले में ही नहीं अन्य मामलों में भी प्रशासन पेंच लगाकर मामलों को टालता रहता है। इसका उदाहरण प्रसूता की मौत है। यह बात समाजसेवी कांग्रेस नेता आबिद खान ने कही है और उनका कहना है कि जिला अस्पताल में प्रसूता की मौत के लिए कहीं न कहीं प्रशासन भी जिम्मेदार है। वजह यह है कि डॉ. मौसिक की शिकायत के मामले में यह स्पष्ट हो चुका था कि जिला अस्पताल के प्रसूति वार्ड में प्रसूताओं से खुली वसूली होती है, लेकिन कलेक्टर और प्रशासन ने तमाम मीडिया रिपोर्ट होने के बाद भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया नतीजा सामने है। स्पष्ट है कि प्रशासन के मुखिया जानबूझकर या नासमझी में निर्णय को टालने का प्रयास करते हैं।
नवल-वर्मा-हेडलाईन-बैतूल  15 सितम्बर 2022