बैतूल(हेडलाईन)/नवल-वर्मा । राजीव तिगड्डा पाथाखेड़ा शराब दुकान के मामले में जिस तरह से प्रशासन ने कार्रवाई से बचने के लिए अन्य अतिक्रमण का मसला सामने ला दिया है। उससे साफ नजर आ रहा है कि प्रशासन अन्य अतिक्रमण को ढाल बनाकर पूरे मामले को टालने का प्रयास कर रही है। जिस तरह से प्रशासन ने अन्य 92 अतिक्रमण का मसला खुद उठा दिया है। उससे शराब ठेकेदार का कितना भला होगा यह अलग बात है, लेकिन इससे भाजपा और उसके विधायक डॉ. योगेश पंडाग्रे की मुसीबत जरूर बढ़ जाएगी। अब यह मामला सारनी पाथाखेड़ा क्षेत्र में एक बड़ा मुद्दा बन जाएगा। जब 92 अन्य अतिक्रमण को हटाने को लेकर हल्ला मचेगा तो विरोध भी सड़क पर आएगा। अब आमला विधायक को देखना चाहिए कि उनकी सरकार में अधिकारियों के लिए शराब ठेकेदार ज्यादा महत्वपूर्ण है या  विधायक की छवि। खैर जो भी हो इससे स्पष्ट हो गया कि जिले के आला अधिकारी के लिए एकमात्र भाजपा विधायक डॉ. योगेश पंडाग्रे के राजनैतिक हित से ज्यादा ठेकेदार का महत्व है?

- कलेक्टर ने वन विभाग को ही संदेह के कठघरे में लाकर खड़ा कर दिया...
जिस तरह से वन विभाग की जांच और उसके बाद डीएफओ एसकेएस तिवारी द्वारा कलेक्टर को लिखे गए पत्र पर कार्रवाई न होना फिर कलेक्टर का संयुक्त जांच का पेंच लगाना बताता है कि कलेक्टर को वन विभाग की जांच और प्रतिवेदन पर भरोसा ही नहीं है। यदि भरोसा होता तो कलेक्टर डीएफओ के पत्र की डिमांड के अनुसार एसडीएम शाहपुर को उक्त अतिक्रमण के मामले में कार्रवाई के लिए सहयोग करने का कहते।

- अन्य अतिक्रमण का मामला प्रशासन उठाकर कर रहा ठेकेदार की मदद...
जिस तरह से राजीव तिगड्डा दुकान में कलेक्टर ने उक्त खसरे में अन्य 92 दुकानदारों के अतिक्रमण को लेकर सवाल खड़ा किया। उससे यह तो साफ है कि प्रशासन की नियत शराब दुकान हटाने की नहीं है और इसलिए 92 दुकानों के मसले को सामने लाकर खड़ा कर दिया जिससे कि राजनैतिक दबाव दिखाई देने लगे और शराब दुकान हटाने से बचा जा सके। देखा जाए तो यह सवाल कर प्रशासन ने अपने आप पर सवाल खड़ा कर लिया?

- टास्क फोर्स के औचित्य पर ही कलेक्टर ने लगा दिया प्रश्रचिन्ह...
राजीव तिगड्डा की वन भूमि पर 92 से ज्यादा अतिक्रमण की बात कहकर कलेक्टर ने उस टास्क फोर्स के औचित्य पर सवाल खड़े कर दिया है? जिसकी बैठक की अध्यक्षता स्वयं कलेक्टर करते है? वर्तमान कलेक्टर के कार्यकाल में ही कम से कम एक दर्जन बैठक टास्क फोर्स की हुई है, लेकिन किसी ने भी पाथाखेड़ा के वन भूमि वाले इस अतिक्रमण को लेकर कभी प्रोसिडिंग में देखने पढऩे में नहीं आया!

- इधर...निर्णय लेने की असक्षमता को दर्शाता है प्रसूता की मौत का मामला...
मई माह में जब डॉ मौसिक पर 5 हजार रूपये एक निजी अस्पताल से लेने के आरोप लगे। इसके बाद यह भी मीडिया से सार्वजनिक हो चुका था कि प्रसूति वार्ड में सीजर के 5 हजार रूपये वसूल किया जाना एक ट्रेंड बन चुका है और हर गायनोलॉजिस्ट इस खेल में शामिल है। इतना सब सामने आने के बाद भी कलेक्टर ने डॉ मौसिक की जो जांच करवाई उसमें एक निजी अस्पताल की नर्स सोनम पवांर को जिम्मेदार ठहराकर बाकी सबको बचने का मौका दिया। जिस तरह का ठोस निर्णय कलेक्टर को इस मामले में लेकर रिजल्ट देना था वैसा वे कर नहीं पाए और उसी का नतीजा रहा कि जिला अस्पताल में वसूली का खेल खेलने में डॉक्टर और स्टॉफ में कोई डर नहीं बना। नतीजा यह रहा कि एक और प्रसूता की मौत हो गई और कलेक्टर साहब अभी भी जांच-जांच खेल रहे!
नवल-वर्मा-हेडलाईन-बैतूल  16 सितम्बर 2022