बैतूल(हेडलाईन)/नवल-वर्मा । बैतूल जिले में रेत एक बड़ा मसला बन गई है। लीगल तौर पर रेत मिल ही नहीं रही है। जो थोड़ी बहुत चोरी से रेत आ भी रही है तो उसमें खरीदना सामान्य लोगों के बस में ही नहीं है। हालात यह है कि 300 रूपये बोरी में भी रेत नहीं मिल रही है। यह सब इसलिए हो रहा है कि ठेकेदार ने टेंडर डालने में जो लापरवाही या गलती की उसकी वजह से पूरा ठेका और टेंडर प्रक्रिया विवाद में आ गई है। कायदे से तो ठेका ही निरस्त होना चाहिए था, लेकिन राजनैतिक रसूख वाले ठेकेदारों ने प्रशासन की ऑफ द रिकार्ड मदद से  कुछ जुगत लगा ली और मामला हाईकोर्ट तक चला गया। अब हाईकोर्ट में मामला नवम्बर महीने में डिसाईड होने की कुछ संभाावना है। क्योंकि हाईकोर्ट ने नवम्बर की कोई तारीख दी है। जब तक यह डिसाईड नहीं होगा तब तक रेत मिलना बेहद मुश्किल है, और ऐसे में निर्माण कार्य ठप जैसी हालत में है। जिससे बेरोजगारी बढऩे का खतरा भी बढ़ गया है।

- टेंडर को दूषित करने वाले ठेकेदार के 6 करोड़ बचाने का है पूरा खेल...
बताया गया कि जो लापरवाही की थी और जिसकी वजह से ठेकेदार के टेंडर में रेट 32 हजार करोड़ रूपये आ गए थे। उसकी वजह से कायदे से ठेका ही निरस्त होना चाहिए था, लेकिन निरस्त नहीं किया गया। यदि ठेका निरस्त करते तो ठेकेदार के अमानत राशि के रूप में जमा 6 करोड़ रूपये डूब जाते। यह 6 करोड़ रूपये बचाने के चक्कर में ही तिकड़म लगाई जा रही है।

- ठेकेदार का राजनैतिक जुगाड़ प्रशासन को लचीला बना रहा...
जो रेत ठेकेदार है उनका अपना एक राजनैतिक कैरेक्टर भी है और इस फैक्टर की वजह से प्रशासन ने भी ठेके को सीधे निरस्त कर नया टेंडर लगाने की जगह यह नियम अनुसार सेकेण्ड ऑप्शन को मौका देने की जगह 32 हजार करोड़ रूपये का टेंडर डालने को ही बचने का पूरा आप्शन दिया? कायदे से देखा जाए तो यह प्रशासन का मेलाफाईड इंटेशन नजर आता है।

- सब पर भारी पडऩे वाला है ठेकेदार के हितों की रक्षा...
जो स्थिति है उसमें निर्माण कार्य लगभग ठप्प पड़े हैं। जिसकी वजह से मजदूर तबके को काम नहीं मिल रहा है। रेत के धंधे से जुड़े डम्पर और भराई करने वाले मजदूरों को भी काम नहीं मिल रहा है। दीपावाली सिर पर आ रही है। ऐसे में वर्तमान में फसलों की हालत भी खराब है। यह सब स्थितियां व्यापारी तबके के लिए भी हानिकारक साबित हो रही है। महज एक ठेकेदार का हित साधने में।

- यदि नया टेंडर लगाते तो 300 रूपये बोरी में रेत नहीं खरीदना पड़ता...
जो रेत के सिस्टम को समझते है उनका कहना है कि टेंडर में 32 हजार करोड़ डालन के बाद यदि ठेकेदार राशि जमा नहीं कर रहा तो कायदे से टेेंडर निरस्त कर नया टेंडर लगाना था। जो प्रशासन ने नहीं किया है। यदि नया टेंडर लगा दिया जाता तो अब तक टेंडर स्वीकृत होकर खदानें खुल चुकी होती और लोगों को आसानी से रेत मिलती और 300 रूपये बोरी की रेत नहीं बिकती।
नवल-वर्मा-हेडलाईन-बैतूल  27 सितम्बर 2022