(बैतूल) भयानक हादसे में जान गंवाने वाले मृतक पलायन कर जाने वाले मजदूर थे , - काश! बैतूल से होने वाले आदिवासी मजदूरों के पलायन को रोकने के लिए राष्ट्रपति और पीएम कर दें एक ट्वीट
बैतूल(हेडलाईन)/नवल-वर्मा । प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति का ट्वीट सामने आते ही प्रदेश सरकार और जिले का प्रशासन जाग गया और संवेदनशील हो गया। नतीजा यह रहा कि चंद घंटो में ही चार-चार लाख रूपये के चैक दे दिए गए। यह स्थिति देखने के बाद जिले की सिविल सोसायटी ने मांग की है कि देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति बैतूल से होने वाले पलायन को लेकर भी एक ट्वीट कर दें। ताकि बैतूल में उद्योग धंधे खुलवाने को लेकर प्रदेश सरकार ठोस और परिणाम मूलत कदम उठाए। दरअसल झल्लार के पास भयानक हादसे में जिन 11 लोगों की जान गई वे सब आदिवासी मजदूर थे और मजदूरी करने के लिए महाराष्ट्र गए थे तथा वहां से आदिवासी परम्परा के अनुसार दीपावली का पर्व मनाने बैतूल में अपने गांव लौट रहे थे।
- भुगतान की लचर व्यवस्था से आदिवासी मजदूरों का मनरेगा से हो रहा मोह भांग : रामचरण इरपाचे...
मनरेगा को लेकर पिछले कुछ वर्षो में यह देखने में आ रहा है कि मजदूरों को निर्धारित समय सीमा में भुगतान ही नहीं होता है। जो आदिवासी मजदूर वर्ग है उसकी जो सोच है वह यह है कि उसने यदि काम किया है तो उसे हफ्ते के आखरी में पैसा दे दिया जाना चाहिए। सामान्य तौर पर वे गांव के आसपास के हॉट बाजार के दिन भुगतान चाहते हैं। मनरेगा में ऐसा हो नहीं रहा है। महीनों -महीनों मजदूरी का भुगतान नहीं होता। जिला पंचायत सदस्य रामचरण इरपाचे का कहना है कि मनरेगा में आदिवासी मजदूरों में मोहभंग की स्थिति इसलिए है कि मजदूरी की दर प्रायवेट सेक्टर से कम है और दूसरा बड़ा कारण समय पर भुगतान न होना है। अब मजदूर यह मानते हैं कि जब कोई काम नहीं मिलेगा तब मनरेगा में करेंगे।
- जिले के राजनेता और जनप्रतिनिधियों ने रोजगार को लेकर कभी कोई ठोस पहल ही नहीं की : संदीप धुर्वे...
जिला पंचायत सदस्य संदीप धुर्वे का कहना है कि बैतूल में रोजगार के संसाधनों को लेकर किसी भी राजनैतिक दल ने या राजनेता ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। उसी का नतीजा है कि बैतूल के लोगों को रोजगार के लिए पलायन करना पड़ता है। उनका कहना है कि केवल आदिवासी ही नहीं बल्कि अन्य वर्ग के लोग भी पलायन करते हैं। बैतूल में उद्योग धंधे न होने से भारी संख्या में लोग पीथमपुर, इंदौर और मंडीदीप भोपाल में जीवन यापन करने जाने पर मजबूर हैं।
- बैतूल से आदिवासी मजदूरों को ले जाकर बनाया जाता है बंधक भी...
अक्सर ऐसे मामले सामने आते हैं जिससे पता लगता है कि बैतूल के मजूदरों को गोवा, हैदराबाद, पूना आदि जगह ले जाकर बंधक बना लिया जाता है। उन्हें मजदूरी नहीं दी जाती और लौटकर आने भी नहीं दिया जाता। कई मामलों में अलग-अलग एनजीओ की मदद से पुलिस और प्रशासन ने ऐसे बंधक बनाए मजदूरों को मुक्त कराया है।
नवल-वर्मा-हेडलाईन-बैतूल 04 नवम्बर 2022