श्री तापी माहात्मयम, श्री ताप्ती पुराण महाकाव्य हिन्दी में उपलब्ध नहीं था। जिसे स्व. श्रीमति कलावती मान्धाता ने तापी माहात्मयम संस्कृत-गुजराती संस्करण से संस्कृत श्लोको का हिन्दी भाषा में रूपान्तर जिसे स्व. श्रीमति रामकुंवर खेरे ने संशोधित एवं संपादित किया और मैने (गगनदीप खेरे) ने अभी तक इसके चार संस्करणों का प्रकाशन किया। चौथा संशोधित संस्करण मूल संस्कृत श्लोको एवं हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशित किया गया है।

मां ताप्ती पुराण हिन्दी संस्करण की कहानी 1999 से प्रारंभ होती है। सन 1999-2000 को संस्कृत वर्ष घोषित किया गया था लोक शिक्षण संचालनालय म.प्र. शासन के आदेश क्र. विद्या/ई/99/संस्कृत क्र 1086/भोपाल दिनांक 30/08/1999 को जारी निर्देशानुसार संस्कृत भाषा प्रोत्साहन हेतु विलुप्त प्राय संस्कृत कृतियों को प्रकाश में लाने हेतु निर्देशानुसार संस्कृत भाषा प्रोत्साहन हेतु निर्देशित किया गया था।
उस दौरान प्रभारी प्रधान पाठिका श्रीमति रामकुंवर खेरे को यह आदेश की प्रति प्राप्त हुई। जिसके परिपालन में श्री तापी महात्मय महाकाव्य का हिन्दी रूपान्तरण कार्य किया गया है।
सतपुड़ा के पावन अंचल मेंकल पर्वत श्रेणी में बसा मुलताई कस्बा मां ताप्ती उद्गम स्थली है जिसके कारण इसके संबंध में साहित्य की खोज हमेशा होती रही है। जिसका कुछ भाग मुलताई के ताप्ती सेवा मण्डल से संस्कृत में प्राप्त हुआ लेकिन पूरा नहीं था जिसके बाद जानकारी प्राप्त हुई कि यह ग्रन्थ संस्कृत से गुजराती भाषा में अनुवादित हुआ था। जिसकी जानकारी मुलताई के खण्डेलवाल बुक  स्टार्स के संचालक को दी गई एवं उसकी प्रति के लिए अनुरोध किया गया। जिस पर ब्रज किशोर खण्डेलवाल बिज्जु भैय्या ने तापी महात्म्य का संस्कृत गुजराती संस्करण उपलब्ध करवाया। जो कृष्ण शंकर केशवराव गुजराती रूपान्तरकर्ता के श्री तापी माहात्म्य का संस्कृत गुजराती संस्करण जिसके संशोधक मानिकलाल चुन्नीलाल भगवान मथुरा वाले थे और प्रकाशक अंबालाल चिमनलाल पण्डया थे यह प्रति पूर्व में प्रकाशित संस्कृत से गुजराती 7 ताप्ती महात्म्यं के आधार पर अनुवादित हुई थी। जिसमें वर्ष 1664-भट्टदिन मणिशंकर प्राणशंकर-सूरत, वर्ष 1768 में ज्यो, कृष्णशंकर केशवराम-सूरत, वर्ष 1768 में शुक्ल महाशंकर घेबा भाई-सूरत, वर्ष 1768 में आनन्दराम रत्नेश्वर पाठक-बुरहानपुर, वर्ष 1802 में जनी केशवराम कृपाराम-गुप्तेश्वर सूरत, वर्ष 1832 में शास्त्री अमृतराम कृष्णशंकर-रादरे सूरत, वर्ष 1825 में बघनपुराण माहात्म्य आनन्दराम रत्नेश्वर पाठक-बुरहानपुर निम्रलिखित पुरानी 7 हस्तलिखित प्रतियां संशोधन के लिए एकत्रित की गई थी। जिसके आधार पर कृष्ण शंकर केशवराव गुजराती रूपान्तरकर्ता के श्री तापी माहात्म्यम का संस्कृत गुजराती संस्करण जिसके संशोधक मानिकलाल चुन्नीलाल भगवान मथुरा वाले थे और प्रकाशक अंबालाल चिमनलाल पण्डया थे  की प्रति के संस्कृत श्लोको का श्रीमति कलावती मान्धाता सेवानिवृत्त प्रधान पाठिका मुलताई ने हिन्दी रूपान्तर 70 वर्ष की आयु में दिनांक 6 जनवरी 1999 को प्रारंभ कर 6 मार्च 1999 को पूर्ण किया (नानी प्रतिदिन डायरी लिखती थी जिससे ज्ञात हुआ) श्रीमति कलावती मान्धाता ने उस समय बताया था जब भी अनुवाद में उन्हे कठिनाई आती थी वह अपने मुंह बोले भाई संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान स्व. पंडित ऋषि कुमार  शास्त्री मुल्ताई से मदद लेती थी।


स्व. श्रीमति कलावती मान्धाता ने तापी महात्मय की हिन्दी हस्तलिपी पाण्डुलिपी अपनी पुत्री श्रीमति रामकुंवर खेरे प्रधान पाठिका एम.ए. संस्कृत को दी। जिसे श्रीमति रामकुंवर खेरे ने अध्ययन किया और पाया कि 70 वर्ष की आयु में बहुत महनत एवं लगन से माताजी कलावती मान्धाता ने इस दुर्लभ कठीन कार्य को किया है। स्व. श्रीमति रामकुंवर खेेरे ने संस्कृत काव्य के महत्व को ध्यान रखते हुए पहले हिन्दी में एवं चौथा संस्करण संस्कृत श्लोको सहित हिन्दी रूपान्तर के संशोधन का कार्य अपने हाथों में लिया और रूपान्तरण में शब्दों के उचित चुनाव, समेचित भाषा के साथ-साथ यह भी ध्यान रखा कि इसका कोई अंश छूट न जाये न ही इसमें कोई अंश बढ़ा-चढ़ाकर जोड़ा जाये।
इस महाकाव्य में 73 अध्याय+दो परिशिष्टों में क्रमश: 1+8 अध्याय, इस प्रकार 82 अध्याय है। जिसमें 4466 उत्कृष्ठ श्लोको का संकलन है। यह कृति भारतीय संस्कृति, पुरातत्व, नीतिशास्त्र और दर्शन शास्त्र का अभुतपूर्व भंडार है। इसके साहित्य में रस-अलंकार की छटा निराली है। इसका साहित्य उच्च कोटी का है।
संशोधन का कार्य पूर्ण होने पर इसे प्रकाशन हेतु इसकी हस्तलिखित प्रति मुझे (गगनदीप खेरे) दी। जिसके प्रकाशन के लिए मेरे द्वारा तात्कालीन बैतूल जिले के साप्ताहिक पंचायत परिक्रमा अखबार में लगातार कई बार विज्ञापन प्रकाशन कराया कि तापी महात्म्य हिन्दी रूपान्तरण उपलब्ध है। यदि कोई प्रकाशन कराना चाहता है तो हम अनुवादित साहित्य उपलब्ध कराना चाहते है। लेकिन कोई इस महाकाव्य के हिन्दी संस्करण को छपवाने सामने नहीं आया ना ही शासन के आदेश के परिपालन में हुए इस कार्य को प्रकाशित करने शासन से मदद मिली।
तब मैंने अपनी नानी स्व. श्रीमति कलावती मान्धाता एवं माताजी स्व. रामकुंवर खेरे की इच्छा को देखते हुए इसे प्रकाशित करने का दृढ़ निश्चित किया, और भोपाल में प्रिंटिंग प्रेस से सम्पर्क किया जहां मुझे ज्ञात हुआ कि प्रिंटिंग का कार्य दो भागों में किया जाना है। पहले कम्प्युटर से टाईपिंग कर बटर पेपर पर निकालना होगा उसके बाद आफसेट मशीन पर प्रिंटिंग होगी। जिसका खर्च बहुत अधिक था। मुझे ज्ञात हुआ कि यदि कम्प्युटर टाईपिंग का कार्य स्वयं कर ले तो खर्च कम हो सकता है। मेरी पत्नि श्रीमति वर्षा खेरे को हिन्दी टाईपिंग कम्प्युटर पर आती थी पर हमारे पास कम्प्युटर नहीं था। उस जमाने में कम्प्युटर दुर्लभ था ए.सी. रूप में केबिन बना कर रखा जाता था तथा कीमत भी अत्यधिक थी, लेकिन जहां चाह होती है वहां राह भी होती है की तर्ज पर एक दिन अचानक न्यूज पेपर से जानकारी प्राप्त हुई कि नागपुर के मोर भवन में कम्प्युटर का एक्सिविशन लगा है, जहां नए एवं पुराने कम्प्युटर बेचे जा रहे है। मैं अपने मित्र मीलिन्द हुद्दार के साथ नागपुर गया और एक्सीवेशन में एक व्यक्ति जो अपना 386 कम्प्युटर ब्लैक व्हाइट मॉनीटर के साथ एक्सचेंज कर नया कम्प्युटर खरीद रहा था मात्र 3500 रू. में हमने वह उससे ले लिया और उस 386 मेमोरी वाले कम्प्युटर से घर पर ही ताप्ती महात्मय के हिन्दी रूपान्तरण ताप्ती पुराण के कम्पोजिंग का कार्य श्रीमति वर्षां खेरे द्वारा किया गया। जिसमें कम्प्युटर एवं कम्पोजिंग से संबंधित दिक्कत आने पर लल्लु पवांर एवं अनिल गणेशे, पंकज अकरते ने हमेशा हमारी बहुत मदद की। उसके बाद इस महाकाव्य के हिन्दी रूपान्तरण का ताप्ती पुराण अस्तित्व में आया और इसे भोपाल के सिंगल कलर जयन ऑफसेट पर कवर पृष्ठ पीली शीट पर लाल प्रिंटिंग के साथ प्रकाशित किया गया। जिसके लिए अत्यधिक आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। क्योंकि धार्मिंक ग्रंथ में विज्ञापन नहीं लगा पा रहे थे, जिसके कारण आर्थिक सहायता नहीं मिल पा रही थी। जब यह जानकारी मेरे बड़े भाई के मित्र संजय अग्रवाल को लगी तो उन्होने आगे आकर इसकी 100 प्रतियां का एडवान्स में भुगतान कर ताप्ती पुराण की प्रतियां प्रिन्ट करवाने में सहयोग दिया और ताप्ती पुराण का पहला संस्करण अस्तित्व में आया। उस समय मैं पत्रकारिता के क्षेत्र में आ गया था। जिसका विमोचन भोपाल के दैनिक नई दुनिया के दफ्तर में संपादक डॉ. सुरेश मलहोत्रा द्वारा किया गया।
ताप्ती पुराण हिन्दी संस्करण की प्रतिया संजय अग्रवाल एवं मेरे द्वारा नगर में भ्रमण कर सभी मंदिरों शासकीय कार्यालयों एवं धर्म कार्यों से जुड़े व्यक्तियों को बाट दी गई, कुछ प्रतियां बिकी भी। ए-4 साईज में छपी इस ताप्ती पुराण के साहित्य की धर्म प्रेमियों ने खूब सराहना की लेकिन इसके क्लेवर छोटे अक्षर सिंगल कलर प्रिंटिंग खराब कागज अधिक मुल्य के कारण इसकी जमकर आलोचना भी हुई।
ताप्ती पुराण प्रथम संस्करण से प्राप्त राशि में और राशि जोड़कर दूसरा संस्करण निकालने की ठानी और आलोचनाओं को मार्गदर्शक मान दूसरे संस्करण की तैयारी चालु कर दी साथ ही यह सोचा कि हमेशा ताप्ती पुराण की राशि ताप्ती पुराण में लगाएंगे और मां ताप्ती का प्रचार प्रसार हमेशा करते रहेंगे।
दूसरा संस्करण ए-5 साईज का ए-4 साईज से आधे साइज का रंगीन आकर्षक कवर पृष्ठ के साथ मुलताई नगर के सभी मंदिरों की फोटो के साथ प्रकाशित किया गया। मुल्य कम करना एवं गुणवत्ता सुधार विपरित कार्य था इस चुनौती को स्वीकारा और जल शुद्धकरण के राजीव गांधी जल ग्रहण मिशन के विज्ञापन इसमें शामिल किये। इसमें मेरी सोच थी जल शुद्ध करण के विज्ञापन होने के कारण ताप्ती पुराण के पाठक इसको स्वीकारेंगे और प्राप्त राशि से ताप्ती पुराण का मुल्य कम एवं आकर्षक कलेवर  हो सकेगा। राजीव गांधी जल ग्रहण मिशन के विज्ञापनों के साथ आकर्षक कलेवर में मां ताप्ती पुराण का दूसरा संस्करण भोपाल के सबसे गुणवत्ता वाले प्रिंटिंग प्रेस आदर्श पब्लिकेशन भोपाल में प्रिन्ट कराया गया तथा इसका विमोचन मध्यप्रदेश के तात्कालीन उपमुख्यमंत्री मा. स्व. सुभाष यादव जी द्वारा किया गया।
दूसरे संस्करण में विज्ञापन के कारण राशि का दबाव न होने के कारण खूब नि: शुल्क वितरित की गई। इसी दौरान  माता जी श्रीमति रामकुंवर खेरे की इच्छा अनुरूप चारों धाम बारह ज्योतिर्लिंग भ्रमण कराने का सौभाग्य मिला। जिसमें हमने रास्ते के सभी धार्मिक स्थानों तीर्थों बारह ज्योतिर्लिंंगों चारों धाम के साथ सूरत, डूमस में जहां ताप्ती जी समुद्र में विलीन होती है वहां बाप जी महाराज जो मां ताप्ती के अनन्य भक्त के पास ताप्ती पुराण की प्रतियां भेंट की। बाप जी महाराज ने अपने पास से 1 हजार रूपए उस समय माता जी श्रीमति रामकुंवर खेरे को दिये और कहा कि मां ताप्ती पुराण का प्रचार प्रसार हमेशा करते रहे।
दूसरा संस्करण कम मूल्य एवं आकर्षक कलेवर अधिक पृष्ठ संख्या के कारण खूब लोकप्रिय हुआ, लेकिन इसमें राजीव गांधी जल ग्रहण मिशन के विज्ञापनों पर आपत्ति ली गई लेकिन इसी बीच मेरे द्वारा लोक शिक्षण संचालनालय के आयुक्त को ताप्ती पुराण के हिन्दी संस्करण की प्रति भेंट कर शिक्षा विभाग के आदेश की याद दिलाया। जिसमें उल्लेख किया गया था कि संस्कृत के विलुप्त प्राय ग्रन्थों को प्रकाश में लाया जाये, जिस पर लोक शिक्षण संचालनालय के आयुक्त ने ताप्ती पुराण के संस्करण की स्क्रूटनी करवाई और आदेश जारी किया कि ताप्ती पुराण के प्रकाशक गगनदीप खेरे ने मई 2000 में इस ताप्ती पुराण द्वितीय संस्करण (हिन्दी) की प्रति लोक शिक्षण संचालनालय को मुल्यांकन हेतु प्रेषित की थी फलस्वरूप लोक शिक्षण संचालनालय मध्यप्रदेश के द्वारा नियुक्त समीक्षकों के प्रतिवेदन के अनुसार क्र./ग्रंथ/1 बी/ समीक्षा/99-2000/169 भोपाल दिनांक 13/09/2000 के निर्देशानुसार इस कृति को क्षेत्रीय जिला ग्रंथालयों में उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों के ग्रंथालयों में शासकीय राशि से खरीदकर रखा जा सकता है।
जिसके बाद ताप्ती पुराण की आलोचनाओं पर विराम लगा उसके बाद इसी तरह तीसरा ताप्ती पुराण का संस्करण प्रकाशित किया जिसका विमोचन सांसद विजय कुमार खण्डेलवाल के हाथों कराया गया।
अभी तक निकाले गये तीनों संस्करणों में तापी महात्म्य का हिन्दी रूपान्तर था लेकिन श्लोक वार संस्कृत हिन्दी संस्करण नहीं था। जिसके चलते ताप्ती पुराण का चौथा संस्करण जिसमें सेवानिवृत्त प्रधान अध्यापिका श्रीमति रामकुंवर खेरे ने श्लोक वार हिन्दी रूपान्तर कर चौथा संस्करण बनाया। जिसे मैंने प्रकाशित किया तथा विजय भवन में हेमंत खण्डेलवाल द्वारा विमोचन किया गया।
इस चौथे संस्करण में संस्कृत एवं हिन्दी दोनों होने के कारण यह अद्वितीय संस्करण बना और आज आम जनता के बीच घर-घर में विराजीत है। ताप्ती पुराण के हिन्दी संस्करण से आम जनता को मां ताप्ती की किर्ती की जानकारी प्राप्त हुई। ताप्ती पुराण के विक्रय में ताप्ती मंदिर के सामने पूजन सामग्री विक्रय करने वाले श्री सुधाकर जैन ने विशेष सहयोग दिया  समय के साथ आज जहां ताप्ती उद्गम स्थल पर नगर पालिका के प्रयासो से भव्यता एवं सुन्दरता दिखाई पड़ती है। वहीं यहा महा आरती घाट पर वर्ष भर लगातार पंडित हनुमान प्रसाद दूबे द्वारा आरती होती है। पुर्णिमा पर महाआरती का आयोजन होता है। मुलताई के कार्तिक मेले का विस्तार हुआ। मां ताप्ती जन्मोत्सव विशाल रूप में मनाया जाने लगा है। मां ताप्ती जन्मोत्सव पर जिले भर में अवकाश घोषित होता है व पूरे जिले में भव्यता के साथ ताप्ती जन्मोत्सव मनाया जाने लगा। मध्यप्रदेश संस्कृति संचालनालय द्वारा ताप्ती महोत्सव को उसके कार्यक्रम के कलेण्डर में शामिल 28, 29, 30 दिसम्बर प्रतिवर्ष ताप्ती महोत्सव के लिए नियत किये गये है, और पूर्व में जहां मां ताप्ती का वैभव एवं किर्ती से आम जनता वंचित थी ताप्ती पुराण के प्रकाशन के बाद मुलताई के राम मंदिर के पुजारी पं.दिनेश चन्द्र शर्मा एवं जगदीश मंदिर के पुजारी पं. संतोष शर्मा जी, अशोक विश्वामित्र एवं कई पंडितों द्वारा कई स्थानों पर ताप्ती पुराण कथा कर आम जनता को मां ताप्ती महीमा से अवगत करा रहे है। वहीं मां ताप्ती मंदिर में ताप्ती मंदिर के पुजारी पं. सौरभ जोशी मां ताप्ती मंदिर में ताप्ती की महीमा से आम जनता को अवगत कराते है और आज मुलताई के साथ पूरे बैतूल जिले को जनता के लिए यह गौरव का विषय है कि दुनिया का सबसे बड़ा कथा वाचक अन्तर्राष्ट्रीय कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा जी सिहोर वाले आज मां ताप्ती उद्गम स्थली बैतूल जिले की धरा पर आम जनता को मां ताप्ती शिव पुराण कथा सुना रहे है। बैतूल जिले वासियों का अहो भाग्य अहो भाग्य।

नवल-वर्मा-हेडलाईन-बैतूल 14 दिसम्बर 2022