(बैतूल) अब जीत हार पर माथापच्ची कर रहे लोग चुनाव में मुद्दों पर ही रहे मौन , - साईड इफेक्ट... चुनाव के बाद राजनीति में ढर्रा बदलेगा इसकी गुंजाईश ही खत्म
बैतूल(हेडलाइन)/नवल वर्मा। मतदान और परिणाम के मध्य लंबा समय है और इसलिए हर दिन माथापच्ची हो रही है कि कौन जीत रहा है और कौन नहीं जीत रहा? चौक चौराहों की चर्चा से लेकर मीडिया तक में भी इस बात को लेकर गुणा भाग किया जा रहा है कि किस विधानसभा क्षेत्र में क्या स्थिति रहेगी। सब अपनी-अपनी विशेषज्ञता के हिसाब से आंकलन प्रस्तुत कर रहे है।
यह वह तमाम लोग है, जिन्होंने चुनाव से मुद्दों को ही गायब करने में बड़ी महती भूमिका निभाई। चुनाव शुरू होने के पहले से कौन चुनाव लड़ेगा का हल्ला मचा, फिर किसकी टिकट कटेगी और किसको मिलेगी का गाना बजते रहा। फिर चुनाव में चुनाव प्रचार का हो हल्ला रहा। फिर बहुत हुआ तो प्रेस नोट से आरोप प्रत्यारोप का हो हल्ला चलता रहा। इन सबके बीच आम जनता और क्षेत्र से जुड़े मुद्दे गायब रहे। अब ऐसी स्थिति में सवाल यह है कि आने वाले पांच वर्ष जो राजनीति होगी उसमें लोगों के सरोकार और मुद्दे ही नहीं होंगे। वजह यह है कि मतदाता ने भी अपने हित और अहित के मुद्दों को लेकर कभी भी किसी भी प्रत्याशी से कोई सवाल ही नहीं किया। सबसे बड़ी बात यह है कि आज की तारीख में कोई मतदाता यह दावा नहीं कर सकता है कि अमुक प्रत्याशी ने उससे इस मुद्दे पर यह वादा किया है, या उसके क्षेत्र के विकास के इस प्लान को लेकर जानकारी दी है। प्रत्याशियों का जनसंपर्क और मतदाताओं का रूझान केवल जुलूस जलसों तक ही सीमित नजर आया। नतीजा यह है कि चुनाव के बाद इस बात को लेकर कहीं कोई मंथन नहीं है कि किसके जीतने से क्या परिवर्तन आएगा। पूरा मंथन इस बात पर है कि किस क्षेत्र से किसको लीड मिल रही है और किसको गड्ढा ? अब इस स्थिति में सबसे बड़ा नुकसान मतदाताओं का ही होना वाला है, क्योंकि उनका कोई ऐसा मुद्दा ही नहीं है कि जिसको लेकर प्रत्याशियों ने सीना ठोंककर सार्वजनिक दावा किया हो और भविष्य में उसकी जिम्मेदारी तय की जा सके। यह स्थिति जिले के हर विधानसभा क्षेत्र में रही। कहीं पर भी मुद्दों के आधार पर चुनाव ही नजर नहीं आया। हर विधानसभा में अपने-अपने ढंग से प्रत्याशी और उसके कथित चाणक्य मैनेजमेंट का जादू दिखाने में लगे थे और इस मैनेजमेंट के जादू में लोकहित और जनसरोकार पर शराब, पैसा और गिफ्ट इतना भारी पड़ा कि पूरा चुनाव इससे बाहर ही नहीं निकल पाया।
- आचार संहिता की खुली धज्जियां उड़ी और जिम्मेदारों ने बंद रखी अपनी आंखे...
चुनाव के दौरान जिस तरीके से पैसा, शराब आदि का हल्ला मचा हुआ था और अलग-अलग तरीके से नजर भी आ रहा था, उसे देखते हुए एक बात बिल्कुल स्पष्ट समझ आती है कि प्रशासनिक सिस्टम में जो कुछ हो रहा था उसकी तरफ से आंखे बंद कर रखी थी। ऐसे अनेक उदाहरण है जिसमें नजर आता है कि आचार संहिता की खुली धज्जियां उड़ी पर कोई एक्शन नहीं लिया गया।
नवल वर्मा हेडलाइन बैतूल 22 नवंबर 2023