(बैतूल) अब फिर कालोनियों को प्रबंधन में लेने को लोग मान रहे है खेल..! , - कलेक्टर को अब बैतूल एसडीएम से पूछ लेना चाहिए कि कालोनी प्रबंधन मुक्त करने में गणित जमता है या नहीं..?
बैतूल (हेडलाइन)/नवल वर्मा। कालोनियों को प्रबंधन में डालना और फिर उसे मुक्त करना भी एक बड़ा जबरदस्त गणित है। हाल ही में बैतूल एसडीएम कार्यालय से प्रबंधन मुक्त की गई कालोनियों को लेकर कलेक्टर को विस्तृत जानकारी लेना चाहिए? कालोनियों प्रबंधन में क्यों डाली जा रही है और कैसे मुक्त की जाती है यह एक विस्तृत गणित है! इस गणित को यदि बैतूल कलेक्टर चाहे तो माचना किनारे की कालोनी के मामले में एसडीएम बैतूल से बखूबी समझ सकते है? इस कालोनी को कैसे और किस आधार पर प्रबंधन मुक्त किया गया यह बड़ा सवाल है! हालांकि प्रबंधन करने को लेकर एसडीएम केसी परते दावा करते है कि जो किया गया नियमगत किया गया, लेकिन जो जानकार है उनका दावा है कि यह कालोनी इस तरह से प्रबंधन मुक्त की ही नहीं जा सकती? अब एसडीएम ने किस आधार पर और कैसे कर दी इस पर एसडीएम ही बेहतर बता सकते है! जैसे तैसे कालोनियां प्रबंधन मुक्त की जाती है वह गणित सामान्य नहीं है? अब फिर कालोनियों को प्रबंधन में डालने की कार्रवाई होने वाली है ऐसे में फिर से यह सवाल उठने लगा है कि डालने के बाद कालोनियों को प्रबंधन मुक्त कर दिया जाएगा तो किसका भला होगा और किसका गणित जमेगा इसको कलेक्टर साहब को भी समझना चाहिए।
- प्रबंधन मुक्त कर दी लेकिन पैसा ही कालोनाईजर ने जमा नहीं किया..!
पूर्व एसडीएम सीएल चनाप एवम वर्तमान एसडीएम के समय जिन कालोनियों को प्रबंधन मुक्त किया गया, उसमें से कुछ कालोनियों को लेकर स्पष्ट जानकारी है कि उन्हें किस आधार पर प्रबंधन मुक्त किया गया, लेकिन प्रबंधन मुक्त करने के आदेश में कालोनाईजर को जो राशि जमा करनी थी और उसकी रसीद प्रस्तुत करनी थी, आज तक उक्त कालोनाईजरों ने रसीद ही प्रस्तुत नहीं की। ऐसे में प्रबंधन मुक्त करने की प्रक्रिया और औचित्य पर गंभीर सवाल अपने आप में खड़ा होता है।
- प्रबंधन में होने के बावजूद भी कालोनियों या प्लॉट की रजिस्ट्री तक कर दी गई...
जो कालोनियों प्रबंधन में ली जाती है वह एक तरह से शासन के आधिपत्य में आ जाती है और बिना प्रशासकीय अनुमति के उसमें खरीद फरोख्त नहीं की जा सकती है, लेकिन बैतूल में यह देखने में आया कि प्रबंधन वाली जमीन या प्लॉट की रजिस्ट्री तक की गई है! अब यह कैसे हुआ इसमें भी बड़ा सवाल है? कुछ लोग तो यह दावा करते है कि प्रबंधन वाले प्लॉट की रजिस्ट्री भी की जा सकती है! अब यह कैसे किया जाता है यह तो वे ही जाने?
- प्रबंधन में होने के बावजूद भी कालोनाईजर वहां करता है निर्माण...
यह भी देखने में आया कि जिस कालोनियों को प्रबंधन में ले लिया जाता है वहां कालोनाईजर बिना किसी विधिवत अनुमति के विभिन्न तरीके के निर्माण कार्य करवाता है। ऐसा पूर्व एसडीएम सीएल चनाप के समय माचना किनारे की एक कालोनी में देखने में आया! सीएल चनाप के बाद एसडीम बनी रीता डहेरिया के समय भी उक्त प्रबंधन वाली तमाम तरह के निर्माण कार्य हुए? जिस पर कई तरह के सवाल है?
- बैतूल में अवैध कालोनाईजिंग खुले राजनैतिक संरक्षण में इसलिए सब है खेल...
अवैध कालोनाईजिंग के मामले में जिम्मेदार जनप्रतिनिधि भी अपना मुंह नहीं खोलते है! या तो वे खुद इनवाल्व होते हैं या उनके चंगू मंगू इस तरह के कामों में इनवाल्व हो? जबकि अवैध कालोनियों की वजह से लोगों को पैसा चुकाने के बावजूद बैंक से लोन नही लोन मिलता है और ना ही स्थाई बिजली कनेक्शन मिलता है। जिला मुख्यालय बैतूल और उसके आसपास ग्रामीण क्षेत्र में एक सैकड़ा से अधिक अवैध कालोनियाँ है! जिन पर नियमगत कार्रवाई होना चाहिए, लेकिन कोई कार्रवाई नहीें होती है? इस तरह की कालोनियों में लोगों को लोक सुविधा न मिलने पर कोई विधानसभा में सवाल तक नहीं करता है?
इसीलिए बैतूल में अवैध कालोनाईजिंग चरम पर है! और खुले राजनैतिक संरक्षण में है?
नवल वर्मा हेडलाइन बैतूल 04 मार्च 2023