(बैतूल) सरकार पर दबाव बनाने अलग-अलग संगठन आ रहे मैदान में, - चुनावी साल का है बवाल : अब तो सुन लो सरकार - हड़ताली लगा रहे गुहार
बैतूल(हेडलाइन)/नवल वर्मा। चुनावी वर्ष है और जैसे-जैसे चुनाव का समय नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे ट्रेंड के मुताबिक अलग-अलग संगठन समुदाय अपनी मांगों और अधिकारों को लेकर मैदान में पूरी ताकत से उतर रहे है। उन्हें लगता है कि चुनावी वर्ष होने से सरकार पर दबाव बनेगा और उनकी मांगों पर विचार होगा, सुनवाई होगी और हो सकता है कि कुछ हाथ भी लग जाए। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि जिन्हें जनता ने वोट देकर चुना है वे लोग कहां है। जनता के वोट से चुने गए सत्ता पक्ष के प्रतिनिधि हो या विपक्ष के प्रतिनिधि हो, दोनों ही अपनी -अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करने में नाकाम रहे है। इसलिए इन संगठनों को इस तरह टेंट लगाकर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर बैठना पड़ रहा है। यदि जनता के चुने हुए नुमाईंदे अपनी-अपनी भूमिका के साथ न्याय करते तो इस तरह कलेक्ट्रेट के पास उद्योग केन्द्र के सामने तंबू लगाकर नहीं हम किसी भीख मांगते हम तो अपना अधिकारी मांगते जैसे नारे नहीं लग रहे होते। जो भी धरना प्रदर्शन या अनिश्चितकालीन हड़ताल पर है उनका कहना है कि यही मौका है कि जब सरकार पर कुछ दबाव बन जाए और हमारी सुनवाई हो जाए। अन्यथा इसके आगे, पीछे तो कोई सुनवाई होना ही नहीं है।
स्थिति : 01: आंगनबाड़ी कार्यकर्ता...
नियमितिकरण सहित 8 मांगों को लेकर बुधवार से आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाएं भी उद्योग केन्द्र के सामने तंबू लगाकर हड़ताल पर बैठ गई है। उनका कहना है कि उन्हें नियमित करने के साथ-साथ उन्हें नियमित वेतन दिया जाए और उनका न्यूनतम वेतनमान 26 हजार रूपये किया जाए। इसके अलावा 24 अप्रैल 2022 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का प ालन किया जाए।
स्थिति : 02: कोटवार-चौकीदार...
चार सूत्रीय मांगों को लेकर कोटवार संघ भी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर बैठे है। उनका कहना है कि उन्हें सरकारी कर्मचारी घोषित किया जाए और कलेक्ट्रेट रेट पर वेतनमान दिया जाए। माल गुजारों द्वारा दी गई भूमि पर कोटवार पंचायत 2007 के अनुसार मालिकाना हक दिया जाए। नगरीय क्षेत्र में कोटवार के पद को यथावत रखा जाए और उम्रदराज कोटवार की जगह उसके परिजन को नियुक्ति दी जाए।
स्थिति : 03: आशा-ऊषा कार्यकर्ता...
आशा-ऊषा कार्यकर्ताओं का आरोप है कि विगत 16 वर्षो से उनका शोषण होते आ रहा है। प्रदेश सरकार ने जिन सात कामों की राशि को दोगुना करने का आदेश जारी किया था उसका भुगतान नहीं हो रहा है। अधिकांश आशाओं को इसका लाभ नहीं मिल रहा है। अन्य राज्यों की तरह प्रदेश की आशाओं को भी निश्चित वेतनमान में न्यायपूर्ण वृद्धि की जानी चाहिए। उनका कहना है कि 2 हजार रूपये में काम करने को मजबूर है।
नवल वर्मा हेडलाइन बैतूल 16 मार्च 2023