चैत्र- नवरात्र पर विशेष् 🚩 एक स्थान ऐसा जहां झूले में विराजित है आदिशक्ति माँ झूलेवाली
बैतूल जिले की चिचोली तहसील की भौगोलिक स्थिति में चारों ओर स्थापित आध्यात्मिक शक्ति केंद्रों में शामिल हरदू में मौजूद "झूले वाली माता" का मंदिर असंख्य देवी भक्तों के लिए श्रद्धा का केंद्र है। चिचोली नगर से 9 किलोमीटर दूर स्थित इस देवी स्थल का इतिहास सदियों पुराना है। सदियों से इस स्थान में लकड़ी से बनी देवी की प्रतिमा को देवी भक्त शक्ति के रूप में पूजते चले आ रहे हैं।
मान्यताओं और किदवंतियो के अनुसार सदियों पूर्व यह देवी स्थल सागाैन के हरे भरे वनों से आच्छादित का था। प्राकृतिक माहौल में यहां देवी की प्रतिमा गुफा के अंदर लकड़ी से बने झूले में निंद्रासन में विद्यमान थी। कालांतर में लोगों को इस देवी के स्थान के बारे में पता चला तो जन सहयोग से इस स्थान पर भव्य मंदिर का निर्माण कर "झूले वाली माता " की मूर्ति को उसी अवस्था में झूले में रखकर मंदिर में स्थापित कर पूजन कार्य किया जाता रहा है।
झूले में विराजित देवी को इस स्थान पर "झूले वाली माता " के नाम से पुकारा जाता है। माता का आशीर्वाद पाने हजारो श्रद्धालु प्रतिवर्ष इस स्थान पर पहुंचकर झूले वाली माता के दर्शन कर अपने जीवन में आने वाली परेशानियों से मुक्ति पाते हैं।
चैत्र नवरात्र में भी लोगों के प्राकृतिक देवी स्थान पर पहुंचने का सिलसिला जारी रहता है।
सदियों से चली आ रही परंपरा अनुसार अष्टमी के दिन यहां पुजारी द्वारा देवी की प्रतिमा को स्नान कराकर देवी का नया सिंगार किया जाता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है जिसके बारे में कोई नहीं जानता।
- तेन्दू के वृक्ष की लकड़ी से बनी है माँ की प्रतिमा...
हरदू स्थित झूलेवाली माता के प्रकट होने का इतिहास सदियो पुराना है। जानकर बताते है कि आज से सालो पहले इस स्थान पर लकड़ी से निर्मित मंदिर बना हुआ था। झूलेवाली माता की प्रतिमा जगंल मे पाये जाने वाले तेन्दू के वृक्ष की लकड़ी से निर्मित है। ग्रामीणो के अनुसार सदियो पहले यह स्थान घने जंगल मे मौजूद था। जहाँ पर झूलेवाली माता स्वतः ही तेन्दू के वृक्ष से प्रकट हुई थी। देवी का यह स्थान आज भी हरे भरे वृक्षो से अच्छादित है।
ग्रामीणो के अनुसार पीढ़ी दर पीढ़ी ग्रामीण इस स्थान पर झूलेवाली माता का पूजन करते चले आ रहे है। पंचमी और अष्टमी के दिन धान से बने काजल को माता की आखो मे लगाकर उनका श्रृगार किया जाता है। ग्रामीणो के अनुसार जिस व्यक्ति की पूजा से माता प्रसन्न होती है, उसे झूलेवाली माता को झूला झूलाने की आवश्कता नही पड़ती। बल्कि स्वयं ही निद्रासन की स्थिति मे झूले मे विराजमान माता का झूला स्वतः ही झूला चालू हो जाता है।
झूलेवाली माता के दरबार मे शारदीय नवरात्र एवम चैत्र नवरात्र मे तीन प्रहर की आरती की जाती है । सभवतः यह स्थान देश का एकमात्र ऐसा स्थान है जहाँ आध्यशक्ति प्राकृतिक स्वरूप मे प्रकृति से निर्मित होकर तेन्दू की लकड़ी से बनी प्रतिमा मे झूले मे निंद्रासन की स्थिति मे विराजमान है।
जो स्वयं ही किसी चमत्मकार से कम नही है। सनातन हिन्दू धर्म मे पत्थर से बनी प्रतिमाओ का पूजन किया जाता है, लेकिन झ्स स्थान पर पर सतपुड़ा के घने जंगलो मे पाये जाने वाले तेन्दू के वृक्ष की लकड़ी से झूलेवाली माता की प्रतिमा निर्मित होना किसी रहस्य से कम नही है। सदियो से इस आदिवासी अंचल मे श्रदालु झूलेवाली माता को पूर्ण शिद्धत आस्था से पूजते चले आ रहे है।
इस स्थान पर दूर - दूर से श्रद्धालु पहुचकर झूले मे विराजित झूलेवाली माता के दर्शन कर अपनी मुश्किलो को हल करते है। इस स्थान पर झूले मे निन्द्रासन की स्थिति मे मौजूद प्रतिमा का बिना किसी सहारे झूला झूलना भी अपने आप मे चमत्कार है।