(बैतूल) सरस्वती विद्या मंदिर में नाम परिवर्तन में जानबूझकर लगाए जा रहे पेंच , - दानदाता को नाम तक नहीं मिलने देना चाहते जिला शिक्षा अधिकारी
बैतूल (हेडलाइन)/नवल वर्मा। शिक्षा विभाग का अपना ढर्रा है जो सुधरने का नाम ही नहीं ले रहा है। हालत यह है कि भूमि दानदाताओं को उनका हक देने में भी जिला शिक्षा अधिकारी को तनाव होता है। यही कारण है कि करोड़ों की जमीन शिक्षा के लिए दान देने वाले दानदाता अपने नाम के लिए तरस रहे है, जबकि वे स्वर्गवासी हो चुके है। यह हरकत ऐसी शैक्षणिक संस्थाओं के साथ जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा की जा रही है, जो कि एक संगठन विशेष से सम्बद्ध मानी जाती है। बताया गया कि सरस्वती विद्या मंदिर के लिए करोड़ों रूपए की बेशकीमती जमीन जिन दानदाताओं ने दान में दी है । अब उनके वारसान उनके स्वर्गवासी होने पर उनका नाम स्कूल के टाईटल में चाहते है। इसके लिए स्कूल संचालन समिति को भी कहीं कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन जिला शिक्षा विभाग ने और उसके अधिकारियों ने मामले को लंबित कर रखा है। फाईल आगे नहीं बढ़ा रहे है, नये-नये पेंच लगाते है। जिसकी वजह से स्कूलों के प्रस्ताव के बावजूद पिछले तीन वर्ष में उक्त सरस्वती विद्या मंदिर का नाम परिवर्तन नहीं हो पाया है।
जो जानकारी उपलब्ध है उसके अनुसार 07 फरवरी 2020 को महर्षि अरविंद शिक्षा समिति बैतूल द्वारा एक प्रस्ताव जिला शिक्षा विभाग को भेजा गया था, जिसमें मुकेश पिता विजय खण्डेलवाल अध्यक्ष, महर्षि अरविंद शिक्षा समिति कालापाठा ने शपथ पत्र देकर समस्त दस्तावेजों में विद्यालय के नाम सरस्वती विद्या मंदिर से हटाकर श्रीमती वैजयंती सोमण सरस्वती विद्या मंदिर करने के लिए प्रस्ताव दिया गया था। इस प्रस्ताव के देने के तीन वर्ष बाद भी अभी तक इसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। जबकि अब यह बताया जा रहा हेै कि इस तरह नाम परिवर्तन को लेकर अब मामला शिक्षा विभाग से आगे बढक़र जिला योजना समिति तक चला गया है। दानदाता ने जो जमीन दान दी थी, उसमें दान की शर्तो में स्पष्ट लिखा है कि शाला से संबंधित समस्त पत्राचार नगरपालिका परिषद, शिक्षा विभाग व अन्य समस्त शासकीय, अदर्धशासकीय में स्व. श्रीमती वैजयंती सोमण सरस्वती विद्या मंदिर के नाम से ही होगा। दानग्रहिता संस्था के वर्तमान पदाधिकारी व सदस्य एवं भविष्य में पदस्थ होने वाले पदाधिकारियों व अन्य सदस्यों को शाला के उक्त अनुसार नाम से किसी भी प्रकार की तब्दीली का किसी प्रकार का अधिकार नहीं होगा। शाला में उक्त नाम के अनुसार तब्दीली करने की स्थिति में यह दानपत्र स्वत: निरस्त हो जाएगा। अथवा वारसानों में से किसी एक वारसान को यह अधिकार होगा कि उक्त अनुसार दान के समाप्त हो जाने की दशा में दान में दी गई भूमि को अपने आधिपत्य या स्वामित्व में ले सकेगा। मसला सिर्फ कालापाठा स्कूल नाम परिवर्तन का नहीं है। बल्कि गाढ़ाघाट के सरस्वती शिशु मंदिर सहित कालापाठा सरस्वती विद्या मंदिर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय का भी ऐसा ही नाम परिवर्तन में पेंच फंसा रखा है?
नवल वर्मा हेडलाइन 25 जुलाई 2023