बैतूल(हेडलाइन)/नवल वर्मा। प्रशासनिक कार्यप्रणाली ऐसी है कि सुशीला जैसे अवैध कालोनाईजरों का तो कुछ बिगड़ता नहीं है, लेकिन इनकी अवैध कालोनी में धोखे की वजह से प्लॉट खरीद चुके लोग ही उलझते है। अधिकांश अवैध कालोनियों के मामले में यह सामने आता है कि सूचना और शिकायत मिलने के बाद भी राजस्व विभाग और नगरपालिका तब तक कालोनाईरों के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लेती जब तक की उसके पूरे प्लॉट न बिक जाए। 
प्लॉट बिकने के बाद प्रबंधन की कार्रवाई की जाती है और प्रबंधन में लोगों को बेचे जा चुके प्लॉट रख लिए जाते है। ऐसी स्थिति में जो प्लॉट खरीदते है, उनके प्लॉट का ना तो नामांतरण होता है और न ही वे उसे बेच सकते है। बैंक से लोन भी नहीं ले सकते है। जबकि कायदे से इस तरह की स्थिति में कालोनाईजर पर एक्शन होना चाहिए। यदि अवैध कालोनी में प्लॉट पूरे बेचे जा चुके है तो कालोनाईजर की अन्य संपत्ति को अटैच कर उसको नीलाम किया जाना चाहिए, लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया जाता है। आमला में सुशीला की अवैध कालोनी के मामले में एक बात तो बिल्कुल स्पष्ट नजर आ रही है कि नगरपालिका आमला के सीएमओ और तहसीलदार ने वहां पर अपनी भूमिका का ठीक से निर्वहन नहीं किया। यदि किया होता इस कालोनाईजर के खिलाफ कायदे से एफआईआर दर्ज कराई जाना चाहिए थी। प्रशासन ने अवैध कालोनी को लेकर जो एक्शन लिया उसमें भी अवैध कालोनाईजर का कुछ भी नहीं बिगड़ा। यदि किसी का नुकसान हुआ तो वहां पर प्लॉट खरीदने वाले लोगों का हुआ है। जिनके प्लॉट प्रबंधन में डाल दिए गए है।
नवल वर्मा हेडलाइन बैतूल 10 सितंबर 2023