बैतूल(हेडलाइन)/नवल वर्मा। सामान्य तौर पर देखने में यह आता है कि कालोनाईजर पार्क, खेल मैदान, सामुदायिक निस्तार, सडक़, नाली आदि के लिए छोड़ी गई जमीन भी बेच डालता है और बाद में कालोनियों में इसको लेकर नागरिक सुविधाओं में समस्याएं खड़ी होती है। जैसा कि आमला की सुशीला की अवैध कालोनी में देखने में आ रहा है। यहां पर 20 फीट की सडक़ बताई गई, लेकिन वह मौके पर सड़क ही नदारद है। इस तरह की स्थितियां और शिकायतों को देखते हुए कलेक्टर ने सोमवार को होने वाली टीएल की बैठक में आदेश दिए है कि अब जो भी कालोनियां विकसित की जाएगी या फिलहाल अभी विकसित हो रही है। उन सब के खसरे में ही नियम अनुसार रिक्त छोड़ी गई जमीन और सडक़, नाली आदि की जमीन की जानकारी दर्ज की जाए। कलेक्टर का कहना है कि ऐसा करने से जो वहां पर प्लॉट खरीदेंगे उनके साथ धोखा होने के चांस खत्म हो जाएंगे। 
कालोनाईजर या डेव्हलपर्स खाली छोड़ी गई ईडब्ल्यूएस, पार्क, मंदिर, सामुदायिक भवन, सडक़, नाली की जमीन बेच नही पायेगा। उन्होंने राजस्व अधिकारियों के साथ-साथ टीएनसीपी के लिए भी यह निर्देश दिए है कि कालोनियों की अनुमतियों के बाद उक्त कालोनियों का निरीक्षण भी करें, जिससे कि यह स्पष्ट हो कि जिन शर्तो के तहत कालोनी में अनुमति दी गई है, क्या वे नागरिक सुविधाएं लोगों की उपलब्ध कराई जा रही है या नहीं। गौरतलब रहे कि वर्तमान कलेक्टर अमनबीर सिंह बैंस के कार्यकाल में अवैध कालोनियों को लेकर सबसे ज्यादा ठोस कार्रवाई हुई है। अवैध कालोनियों को लेकर जो भी प्रमाणित मामला उनके संज्ञान में आया है, उसमें रिजल्ट और कार्रवाई हुई है । हालात यह है कि प्रबंधन मुक्त होने के बाद कालोनी को उन्होंने फिर से परीक्षण करवाकर प्रबंधन में भी लिया गया है। यह अपने आप में ऐतिहासिक एक्शन है।

- अधिकारी कालोनी के प्रबंधन लेने में जानबूझकर करते है लेटलतीफी...
 सामान्य तौर पर यह देखा जाता है कि पटवारी, आरआई, तहसीलदार और एसडीएम को अवैध कालोनी की सूचना मिलने के बाद भी तब तक उसे प्रबंधन में नहीं लेते है, जब तक कि कालोनाईजर वहां पर प्लॉट नहीं बेच देता। प्लॉट बिक जाने के बाद कालोनी प्रबंधन में लेने से प्लॉट खरीदने वालों का नुकसान होता है।
नवल वर्मा हेडलाइन बैतूल 12 सितंबर 2023