(बैतूल) सेठ और भैया की वर्किंग में अंतर को जाहिर करती है यह ऑफ द रिकार्ड कथा..., - - पूर्व माननीय ने तो बिना कमीशन के समर्थक की फाईल चलवाई..., - - वर्तमान माननीय ने तो समर्थक से कमीशन दिलवाकर फाईल बढ़ाई..., - आखिर क्यों... नगरीय निकाय में भ्रष्टाचार और बेलगाम नौकरशाही के सामने सत्तापक्ष भी नजर आता है बेबस..?
बैतूल(हेडलाइन)/नवल वर्मा। राजनीति में चुनावी जीतना और हारना अलग बात है, लेकिन किसका प्रशासन तथा नौकरशाही में किसका और कैसा दबदबा है वहीं वह अपने कार्यकर्ता और समर्थकों के काम में क्या फार्मूला आजमाता है, यह तय करता है कि उक्त जनप्रतिनिधि या नेता की ताकत क्या है? बैतूल जिले की राजनीति में विपक्ष के पूर्व माननीय जिन्हें सेठ जी के नाम से भी जाना जाता है और सत्तापक्ष के वर्तमान माननीय जिन्हें भैया के नाम से पुकारा जाता है, उनकी वर्किंग में अंतर को लेकर ठेकेदारों में और अन्य लोगों में तुलनात्मक चर्चा हो रही है? इस चर्चा में यह सामने आ रहा है कि सेठ अपने पावर का इस्तेमाल करना जानता है और वह अपने समर्थक या कार्यकर्ता का काम कराना जानता है? हालांकि भैया भी अपने समर्थक या कार्यकर्ता का काम तो करवा देते है, लेकिन उनका जो तरीका है उसमें कार्यकर्ता या समर्थक निराश हो जाता है और उसे लगता है कि भैया के पास जब पावर है तो उसका असर तत्काल और मनमाफिक क्यों नहीं होता? दरअसल नगरीय निकाय में ठेकेदारी के क्षेत्र में भैया और सेठ के एक-एक समर्थक की कथा ऑफ द रिकार्ड खूब सुनी और सुनाई जा रही है! इसमें जहां सेठ के फोन पर समर्थक की फाईल बिना किसी पेटी के आराम से आगे बढ़ गई! वहीं भैया के समर्थक के फाईल आगे तो बढ़ी, लेकिन भैया के वित्तीय समर्थन के कारण आगे बढ़ी? भैया ने समर्थक से नौकरशाही को फाईल बढ़ाने के लिए समर्थक की अर्थव्यवस्था कर दी, लेकिन सेठ टाईप फोन लगाकर अपनी ताकत नहीं दिखाई।
ऑफ द रिकार्ड : 01 सेठ ने शाखा प्रभारी से फोन लगाकर पूछा कि अमूक की फाईल कहां है और क्या स्थिति है मुझे कल तक क्लीयर करके बताओ, 24 घंटे में रिजल्ट मिला...
नगरीय निकाय की चर्चाओं के मुताबिक सेठ जी के एक समर्थक की फाईल किसी प्रभार की अनुमति के लिए कलेक्ट्रेक्ट की किसी शाखा में पहुंची। फाईल पहुंचने के बाद शाखा प्रभारी ने संबंधित से दो पेटी की डिमांड कर दी और बोले कि बगैर दो पेटी के फाईल आगे नहीं बढ़ेगी? समर्थक भी समझता था कि सिस्टम में जो लगता है वह तो देना ही होगा। उसने प्रयास भी किया कि साहब कुछ कम करके उसका काम निपटा ले, लेकिन साहब भी थे कि दो पेटी से नीचे आने को तैयार नहीं थे और साथ ही साहब ने समझा दिया था कि इससे कम में फाईल आगे नहीं बढ़ेगी और आपत्तियां भी लगेगी। समर्थक आखरी में निराश होकर सेठ के दरबार में पहुंचा, अपनी तकलीफ बताई और बताया कि उसके काम की फाईल कहां पर है और उससे दो पेटी की डिमांड हो रही है। यह सुनने के बाद सेठ ने तत्काल शाखा प्रमुख को फोन लगाया और पूछा कि हमारे कार्यकर्ता की फाईल आपके पास है और कब तक हो जाएगी? इस पर उधर से फोन पर कुछ कहा गया तो सेठ ने कहा कि कल तक हो ही जाना चाहिए। इस पर शाखा प्रमुख ने कहा कि आज ही कर देता हूं। यह सुनने के बाद सेठ ने कहा कि काम करके मुझे भी अवगत कराना और कुछ देर में ही संबंधित कार्यकर्ता को शाखा प्रमुख का फोन आया कि आपका काम हो गया!
ऑफ द रिकार्ड : 02 भैया ने अपने कार्यकर्ता से कहा कि मुझसे दो पेटी ले जा, कहां उसे फोन करेंगे, अपनी फाईल आगे बढ़ा जब काम हो जाए तो मुझे लौटा देना...
इधर भैया से जुड़ा एक वाक्या और नगरीय निकाय में खूब सुनाया जाता है और सुनाने वाले भी कोई और नहीं भैया के ही समर्थक है। जो सबसे चर्चित कथा है वह यह है कि भैया के एक समर्थक की फाईलें एक इंजीनियर के पास पहुंची! यह वही इंजीनियर है जो भैया की कृपा दृष्टि से प्रमोशन के बाद बैतूल आया? उसने फाईलों में छिपे हिसाब-किताब के आधार पर अंकों को देखकर एडवांस का पर्चा थमा दिया? जिसका इशारा साफ था कि दो पेटी खर्च करोंगे तो फाईल आगे बढ़ेगी! भैया समर्थक को पता था कि दो पेटी लगता है, लेकिन वह चाह रहा था कि बात कुछ कम, ज्यादा में जम जाए। इस पर साहब ने दो टूक शब्दों में कहा कि जो दूसरे से ले रहा हूं, वहीं तुमसे मांग रहा हूं! जिन्होंने दिया उनसे ही पूछ लो? समर्थक और साथी मानने को तैयार नहीं थे! इसमें उन्होंने बीच का रास्ता निकालते हुए साहब को प्रस्ताव दिया कि एडवांस की जगह उधार में फाईलें आगे बढ़ा दो, फिर भी साहब नही माने! तब वे भैया की डेवढ़ी पर पहुंचे और पूरा किस्सा सुनाया? समर्थकों ने भैया से कहा कि एक फोन कर दो काम हो जाएगा? इस पर भैया बोले कि इससे बोलना ठीक नहीं रहेेगा! ऐसा करो दो पेटी मुझसे ले जाओ और काम निकाल लो और जब आ जाए तो वापस लौटा देना! दो पेटी देने के बाद ही काम हो पाया?
- पहचान कौन? जो प्रमोशन पर आया और एक खोखा लेकर गया...
भैया से दो पेटी उधार लेकर जिस साहब को समर्थक ने दिए थे, उनको लेकर बताया गया कि वे बैतूल में ही बतौर इंजीनियर तबादला होकर पड़ोसी जिले से आए थे और इसके बाद वे वापस तबादला होकर उसी पड़ोसी जिले में गए? इसके बाद वे प्रमोशन लेकर फिर बैतूल आ गए! जब वे बैतूल आए तो हमने उनसे मोबाईल पर पूछ लिया कि महोदय अभी तो गए थे फिर कैसे वापसी हो गई? इस पर उन्होंने हंसते हुए कहा कि भैया से पूछकर और उनकी मर्जी के बाद ही उनकी वापसी हो रही है? गौरतलब रहे कि रिटायरमेंट तक यह 01 खोखे से ज्यादा लेकर गए!
नवल वर्मा हेडलाइन बैतूल 11 जून 2024