बैतूल(हेडलाईन)/नवल वर्मा । शिक्षा का अधिकार अधिनियम में बच्चों के निजी स्कूल में प्रवेश नि:शुल्क की स्थिति केवल कक्षा 8 वीं तक है। ऐसी स्थिति में गरीब बच्चे 8 वीं के बाद कहां जाए और क्या करें? इसका कोई जवाब इन गरीब बच्चों के अभिभावकों के पास नहीं है? ऐसा ही एक अभिभावक आवेदन लेकर अधिकारियों के दफ्तर के आसपास घूम रहा है और अधिकारी इसे पॉलिसी मेटर बताकर अपना पल्ला झाड़ ले रहे है। इस स्थिति में इस गरीब अभिभावक का अपने वोट से चुने जाने वाले विधायकों और सांसद से यह सवाल है कि आरटीई को लागू हुए डेढ़ दशक से भी ज्यादा हो चुका है, ऐसे में इन्होंने इस पॉलिसी को लेकर कब मुद्दा सदन में उठाया? उस अभिभावक का कहना है कि क्या 8 वीं तक आरटीई में पढऩे के बाद गरीब अभिभावक के पास कहीं से कोई खजाना आ जाता है जो आगे फीस देकर निजी स्कूल में पढ़ा लेगा? उनका कहना है कि जब यह पॉलिसी मेटर है तो सांसद और विधायक ने इस मामले में कब-कब विधानसभा या लोकसभा में प्रश्र लगाया उन्हें जनता के सामने आकर बताना चाहिए?

- तीन माह से आवेदन लेकर भटक रहा साईकिल पर रोजमर्रा की वस्तु बेचने वाला गरीब पिता...
शिवदयाल लिल्लौरे को शहर में बहुत से परिवार के लोग जानते-पहचानते है, क्योंकि वह वर्षो से शहर के गली कूचों में साईकिल पर रोजमर्रा की वस्तुएं बेचने का काम कर रहा है। इस व्यवसाय से वह जैसे-तैसे अपनी दाल रोटी चला रहा है और वह पिछले तीन माह से अपने दोनों बच्चों के साथ आवेदन लेकर अधिकारियों के आसपास गणेश परिक्रमा कर रहा है। उसका कहना है कि प्रशासन ने 8 वीं तक आरटीई के तहत उसके दोनों बेटों को एडमिशन दिलवाया। अब 8 वीं के बाद अंग्रेजी माध्यम में नि:शुल्क शिक्षा का उसे कोई विकल्प ही नहीं दिया। उसका कहना है कि जब उसके बच्चे 8 वीं तक अंग्रेजी माध्यम से प्रायवेट स्कूल में पढ़े है तो आगे उन्हें यह विकल्प क्यों नहीं दिया जा रहा है उसका कहना है कि इन प्रायवेट अंग्रेजी स्कूल में केवल फीस में ही राहत मिलती थी, बाकी किताब, गणवेश आदि में उनका अच्छा खासा खर्च हो जाता था। उसका कहना है कि जब शासन या सरकार ने मुक्त शिक्षा का कानून बना दिया और इस तरह की व्यवस्था लागू की है तो क्या यह जरूरी नहीं है कि गरीब बच्चों को 8 वीं तक ही नहीं हायर सेकेण्डरी और कॉलेज तक नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जाए। उसका कहना है कि वह और उसके पुत्र दिव्यांश को 11 वीं में और जयस को 9 वीं में आरटीई के तहत नि:शुल्क प्रवेश दिलाकर शिक्षा दिलवाई जाए क्योंकि अब उसके बस में नहीं कि दो बच्चों का बोझ उठाए। 

- एक गरीब मां को आरटीई में भी नहीं मिली मदद...
एक अल्पसंख्यक वर्ग की गरीब महिला है, उसके पति का 7 वर्ष पहले देहांत हो चुका है और उसके दोनों बच्चे एक निजी स्कूल में पढ़ रहे है, जहां उसे फीस चुकानी पड़ रही है। वह हमलापुर क्षेत्र में एक झोपड़े में रहती है। वह पिछले तीन वर्ष से आरटीई में एडमिशन के लिए भटक रही है, लेकिन उसे एडमिशन नहीं मिल रहा। पिछले दिनों लोकसभा चुनाव के पहले वह कलेक्टर से मिली। कलेक्टर ने आवेदन देखा और कहा कि डीईओ से बोलकर फीस में कुछ राहत करवा देंगे, लेकिन इसके बाद कहीं कुछ नहीं हुआ।
बड़ा सवाल : आखिर हमारे माननीय सदन में क्या और कौनसे मुद्दे उठाते है?
बैतूल के नागरिकों को यह जानने का हक है कि उनके वोट से चुने जाने वाले माननीय किन मुद्दों पर और किस आधार पर सदन में सवाल लगाते है? क्या यह माननीय जनसरोकार से जुड़े मुद्दों को ही उठाते है। यदि यह सही है तो फिर एक गरीब पिता शिवदयाल लिल्लौरे के सवाल का उन्हें सामने आकर जवाब देना चाहिए। माननीयों ने इतने बड़े मुद्दे पर सदन में कोई आवाज क्यों नहीं उठाई, क्या उन्हें इस तरह के मुद्दों की समझ ही नहीं है।
नवल वर्मा हेडलाईन बैतूल 11 जुलाई 2024