बैतूल(हेडलाईन)/नवल वर्मा। बैतूल शहर की सफाई व्यवस्था के लिए जो ठेका टेंडर लगा हुआ है, जो उसमें बाद में शर्ते जोड़ी गई है। उस पर तमाम भाजपाईयों की चुप्पी पर सवाल खड़े हो रहे है। आश्चर्यजनक बात यह है कि अलग-अलग माध्यम से जो जिम्मेदार जनप्रतिनिधि है उनको भी इस बात का संज्ञान है कि बैतूल नगरपालिका के सफाई ठेके में तीन शर्ते क्यों जोड़ी गई और उन शर्तो की वजह से प्रतिस्पर्धा किस तरह से कम होगी? यह जानकारी होने के बावजूद भी केन्द्रीय राज्य मंत्री और बैतूल सांसद सहित बैतूल विधायक तथा नगरपालिका अध्यक्ष बैतूल पूरे मामले में जिम्मेदार अधिकारियों जवाब तलब क्यों नहीं कर रहे है? यह सवाल लोगों के दिमाग में संदेह हो जन्म दे रहा है। जो जानकार है उनका मानना है कि इस टेंडर प्रक्रिया और शर्तो में शामिल तमाम जिम्मेदार अधिकारी जानते है कि बैतूल जिले के जनप्रतिनिधि किसी भी चीज की गहराई में नहीं जाते है और उन्हें आसानी से गुमराह किया जा सकता है। इसलिए उन्होंने जनप्रतिनिधियों को भरोसे में लिए बगैर ही टेंडर में नई शर्ते जोड़ी और उसे लगा भी दिया। यह स्थिति देखकर शहर के जागरूक नागरिक अधिवक्ता अभिषेक दुबे का कहना है कि हमारे जनप्रतिनिधि इतने सरल है कि बड़े से बड़ा भ्रष्टाचार करने वाला भी अगर जाकर उनकी लल्लोचप्पो कर ले तो वे उसके भ्रष्टाचार की तरफ से आंख ही बंद कर लेते है और उनकी नजर में उक्त अधिकारी सबसे काबिल और ईमानदार हो जाता है। खैर मसला यह है कि इन टेंडर शर्तो से किसे फायदा पहुंचेगा? जो इस तरह के टेंडर के सिस्टम को जानते समझते है उनका मानना है कि एक टेंडर लगाकर निरस्त करना और फिर दूसरा टेंडर नई शर्तो के साथ लगाना ही संदेह को जन्म देता है और ऐसी स्थिति में यह जरूरी हो जाता है कि उक्त टेंडर को लेकर एक्सपर्टस से जांच कराई जाना चाहिए और देखा जाना चाहिए कि टेंडर की शर्ते तय करते समय कथित समिति की बैठक में किसने क्या सुझाव दिया था और उसके सुझाव देने के पीछे किस तरह के तथ्य थे? चूंकि यह टेंडर एक वर्ष के लिए है और इसमें 4 सौ 56 लाख रूपए खर्च होंगे जिसमें टेंडर लेने वाले ठेकेदार को हर माह 38 लाख 11 हजार 820 रूपए भुगतान किया जाएगा।

यह राशि पिछले टेंडर की राशि से कहीं ज्यादा है। इसमें भी खास बात यह है कि उक्त ठेकेदार जिन संसाधनों का उपयोग करेंगे वह सभी के सभी नगरपालिका के है। अब ऐसी स्थिति में टेंडर को लेकर आम नागरिकों में सवाल उठना लाजमी है। इन सवालों पर संज्ञान लेना सांसद, विधायक और नपाध्यक्ष जैसे जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी है। इस पर उमेश खांडवे का कहना है कि अभी कोई चुनाव का सीजन नहीं है जो यह जनप्रतिनिधि इस तरह के मुद्दो को लेकर अपना एक्शन दिखाए इसलिए सब बेफिक्र है।

नवल वर्मा हेडलाईन बैतूल 18 अक्टूबर 2024