बैतूल (हेडलाईन)/नवल वर्मा। " रक्षक ही यदि भक्षक बन जाये तो फिर भगवान ही मालिक है ।" यह उक्ति बैतूल जिले के पश्चिम वनमंडल के डीएफओ पर बिल्कुल सटीक बैठती है! जिन्होंने अपने क्षेत्रांतर्गत विगत लगभग तीन वित्तीय वर्ष में जो बंदरबाट वाली कारगुजारियां की हैं उसकी गहन जांच नितांत आवश्यक है। शासन के नियम कायदों को जिस तरह वरिष्ठ अधिकारी द्वारा ही दरकिनार करते हुए अपनों को उपकृत किया गया है लोग अब इस पूरे मामले में उच्चस्तरीय गहन जांच की मांग कर रहे हैं।
गौरतलब है कि बैतूल जिले के पश्चिम वन मंडल मे शासन के नियम कानूनों को ताक पर रखकर जिस तरह से कार्य किये गये है वे सभी गहन जांच का विषय है ? शिकायतकर्ताओ की माने तो पश्चिम वनमंडल बैतूल द्वारा बगैर टेंडर प्रक्रिया का पालन किये विगत तीन सालो मे जमकर खरीदी की गई और अपने चहेतो रिस्तेदारो को विभागीय जिम्मेदारो ने खुलेआम लाभ पहुंचाया और वर्तमान मे भी यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। आलम यह है की पश्चिम वनमंडल मे बिना टेंडर प्रक्रिया का पालन किये वित्तीय वर्ष 2021 से वित्तीय वर्ष 2024 तक सामग्रियों की खरीदी पर बड़ी राशि व्यय कर दी गई है ! वहीं इन सामग्रियों की खरीदी की आमंत्रित निविदा आनलाइन जेम पोर्टल पर नही होने का दावा शिकायतकर्ता तो कर ही रहे है। जो कि जांच में सबके सामने आ ही जायेगा।
मामले को लेकर बताया जाता है कि पश्चिम वन मंडल के डीएफओ वरुण यादव ने अपनी पदस्थापना बैतूल होने के बाद बिना टेंडर प्रक्रिया का पालन किये ही बारवेट वायर , चैनलिंग फेंसिंग, नीलगिरि पोल कूपो मे लगने वाले साइन बोर्ड हर कूपो के लिए खरीदी कर ली गई । कूप नंबर 1, 2, 3, 4, 5, 6 और 7 के लिए यह खरीदी की गई ।

- 5 रेंजो की हर बीट के लिए की गई खरीदी...

जानकारों की माने तो पश्चिम वनमंडल की पांचो रेंज की बिटो में कूपो के लिए टेंडर प्रक्रिया का पालन नही किया गया ? लोगों का कहना है कि बीटो कूपो मे लगाए गये साइन बोर्ड फर्जी तरीके से अपने रिस्तेदारो से स्वयं डीएफओ ने हजारों साइन बोर्ड बुलबाए और खरीदी का भुगतान भी अन्य जिलों मे बेरोकटोक किया गया और ट्रेजरी द्वारा भी वरिष्ठ अधिकारियो के निर्देश होने पर कोई आपत्ति नही ली गई । वहीं यह उल्लेखनीय है कि जहा एक साइन बोर्ड की कीमत अधिकत्तम लगभग 1500 रुपये तक है उस बोर्ड की खरीदी मे 6 हजार रूपए के फर्जी बिल वाउचर बनाकर लगाकर भुगतान किया गया वहीं यह भुगतान तेंदुपत्ता समिति और विभागीय बजट से तक कर दिया गया ?
वहीं सोलर प्लेट जिसका बाजार मूल्य लगभग एक लाख है उसकी खरीदी फिटिंग साहित तीन लाख की खरीदी फर्जी तरिके से की गई और तो और कर्मचारियों की ड्रेस, वर्दी , कपड़ा , जूते , जैकेट , बेल्ट और बोतल खरीदी भी बिना टेंडर के की गई जो निष्पक्ष और गहन जांच का विषय है?

- भ्रष्टाचार रोकने शासन की पहल को लगाया पलीता...

राज्य शासन द्वारा वनमंडलो मे भ्रष्टाचार रोकने कुछ वर्षो पूर्व नियम कानून बनाकर दिशा निर्देश भी जारी किये गये थे जिसमे वन विभाग द्वारा जो भी निर्माण कार्य किए जाएंगे,  वह निविदा पद्धति से होंगे। टेंडर के बिना कोई भी कार्य नहीं कराए जा सकेंगे। विभाग में भ्रष्टाचार व गड़बड़ियों को रोकने के लिए यह शुरुआत की गई थी । इससे पहले जो भी गैर वानिकी यानी पुल-पुलिया, गोदाम, सड़कें, आवास, स्टॉपडैम, चेक पोस्ट बनाए जाते थे, वे  नॉर्म्स के मुताबिक बिना टेंडर के ही होते थे । बता दें कि जंगल में हर साल करीब करोडो रुपए के गैर वानिकी कार्य होते हैं। विभागीय अधिकारी भी मानते हैं कि टेंडर की प्रक्रिया का पालन नहीं होने के कारण शिकायत ईओडब्ल्यू, लोकायुक्त से लेकर विभागीय जांच भी हुई । नई व्यवस्था लागू करने का कारण गड़बड़ियों और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने का मकसद था। वहीं प्रदेश के मुख्यालय भोपाल द्वारा विभागीय कामकाज में पारदर्शिता व गड़बड़ियों पर रोक लगाने के लिए यह कोशिश की गई थी। अब उक्त मामले में देखना होगा कि इसकी सघन जांच-पड़ताल कब तक होगी?
नवल वर्मा हेडलाईन बैतूल 04 नवम्बर 2024