हरियाणा के पश्चात महाराष्ट्र चुनाव के निर्णयों ने यह सिद्ध कर दिया है कि भारत मे पिछले छह दशक से सुनियोजित षड्यंत्रों को अब भारतीय जन मानस ने समझना शुरू कर दिया है।संयुक्त रूप से माओवादी,जिहादी और चर्चवादी षड्यंत्रों को जानकर उसका विरोध कर प्रतिउत्तर देना आरम्भ हो गए है।
हालांकि 2014 में देश मे हुए सत्ता परिवर्तन को देश मे व्याप्त भ्रष्टाचार, बढ़ते आतंकवाद और नेताओं के घिनोने कारनामो से जोड़कर भी देखा जाता है,पंरन्तु मूलतः  यह परिवर्तन देश मे जागरूकता का ही परिणाम था।इसे स्थायी बनाये रखना और देश के समक्ष आसन्न चुनोतियों से निपटना जटिल कार्य था।
पर एक के बाद एक चुनावी परिणामो ने ये सिद्ध किया है कि भारतीय जनमानस की जागरूकता में वृद्धि ही हुई है।इन परिणामो में 2024 लोकसभा चुनावो के परिणामो पर प्रश्नचिन्ह  उठने शुरू हुए थे,सूक्ष्मता से जब इसका अध्ययन करते है तो पाते है विपक्ष का गठजोड़ ,भावनाओं को उद्वेलित करने का सामूहिक प्रयास और सत्ताधारियों का अति उच्च आत्मविश्वास इन परिणामो का मुख्य आधार था।जिसे समय रहते न सिर्फ समझा गया वरन नीचे तक विषयो को पहचाने में भी सफलता प्राप्त की गई है।
जिन षड्यंत्रों की बात की जा रही है उसे समझने के लिए 2002 में पुणे फ़िल्म एवं टेलीविजन इंस्टीट्यूट (एफटीआई आई)संस्थान में हुई घटना जिसमे  छात्रों के द्वारा भारतीय ध्वज को नीचे उतारकर उसके ऊपर बैठकर शराब पीने की घटना, 9 फरवरी 2016 को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जे एन यू)दिल्ली में "देश की बर्बादी तक लड़ेंगे" जैसे नारो को खुलेआम लगाने जैसी राष्ट्र विरोधी घटनाओं का होना है।इसी प्रकार काश्मीर घाटी में पत्थरबाजी की घटनाओं में वृद्धि,17 जनवरी 2016 में हैदराबाद में रोहित वेमुला घटनाओं का होना भी सुनियोजित षड्यंत्रों का होना ही दर्शाता है।दिल्ली अथवा पुणे में घटित ये घटनाएं सामने आई लेकिन देश भर में जैसे ऐसी घटनाओं का जैसे सिलसिला ही जारी था,जो यह दर्शाता था कि भारत की एकता अखंडता को तोड़ने के लिए एक सुनियोजित षड्यंत्रों का सिलसिला ही जारी था।वरिष्ठ लेखक राजीव मल्होत्रा व अरविंद नीलकंदन द्वारा लिखित ब्रेकिंग इंडिया (भारत विखंडन)को जब पढ़ते है तब पाते है कि उक्त षड्यंत्र महज संयोग या स्वाभाविक नही थे, बल्कि माओवादी,जिहादी और चर्चवादी समूहों के सामूहिक कृत्य थे,जो हर हाल में भारत के माहौल को बिगाड़ने व टुकड़े करने की मानसिकता रखते थे।
भले ही इन सभी के बीच मे आपस में गहरी खाई हो,विवाद गहरा हो आपस में संबंध शत्रुता भरे हो फिर भी भारत के संदर्भ में इनके एक साथ पनपने का कारण भारत की सभ्यता,यहां की जीवनशैली,मुख्य रूप से धार्मिक एकता ये सारी बाते इन घटकों को शत्रु समान व मुख्य समस्या प्रतीत होती रही है।पश्चिमी देशों के अधिकांश विश्वविद्यालय और गैर शिक्षण संस्थाए लैब मेड जिहादी और लैब मेड माओवादियों में शामिल होती दिखती है।भारत के बारे में दुष्प्रचार करना इंडियन मुस्लिम काउंसिल(आईएमसी)जैसे गुटों को बढ़ावा देकर कटुता के बीज रोपने का काम भी यही से हो रहा है।
पंरन्तु इन सभी विषयों को तकनीक के युग मे अब भारतीय जनमानस समझता जा रहा है,और न सिर्फ खुद समझ रहा है बल्कि अपने अपने स्तर पर समझाने में भी सफल हो रहा है,और इन सामूहिक प्रयासों की सफलता के रूप में हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनावों को देखा जाना चाहिए,और अतिशयोक्ति नही बल्कि राष्ट्रीयता के भाव को विस्तार पाने के रूप में ही अमेरिका चुनावो के निर्णय को देखा जाना चाहिए।भारत अब न सिर्फ बदल रहा है बल्कि बढ़ भी रहा है,जिसे विश्व की तथाकथित महाशक्तियां भी समझ रही है,और सूझबूझ भरी चालों से अपने कदमो को भी पीछे खींच रही है,60 के दशक से शुरू हुई विघटनकारी नीतियां अब भारत मे ही ध्वस्त हो रही है,लेकिन अभी भी आवश्यकता इसे और अधिक प्रभावी बनाने और एकता के भाव को और अधिक विस्तारित करने की है,क्योंकि अब एक है तो सेफ है।

- आशुतोष शर्मा
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