बैतूल(हेडलाइन)/नवल वर्मा। सूचना का अधिकार अधिनियम में हर स्थिति को लेकर व्यापक व्यवस्था है और स्पष्ट है कि जो जानकारी संसद या विधानसभा के पटल पर रखी जा सकती हो या जो लोक दस्तावेज हो या फिर देश की सुरक्षा से संबंधित न हो तो वह जानकारी सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत दी जाना चाहिए। वन विभाग में टॉप-टू-बाटम अधिकारी सूचना के अधिकार अधिनियम को अपने ही ढंग से परिभाषित कर रहे है। यह देखकर ऐसा लगता है कि इन अधिकारियों को लगता है कि सूचना के अधिकार का कानून उनके अपने घर का कानून है! जिसे वह जैसा चाहेंगे वैसा उपयोग करेंगे? बैतूल जिले के पश्विम और दक्षिण वन मंडल में इसी तरह की स्थिति नजर आ रही है। सूचना के अधिकार में जानकारी न देने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे है। गौरतलब रहे कि  वन विभाग एक ऐसा महकमा है, जिससे सीधा आम लोगों का कोई सरोकार नहीं रहता। लेकिन यहां पर हर वर्ष विभिन्न तरह के निर्माण सहित खरीदी आदि के लिए करोड़ों का बजट आवंटन होता है और खर्च भी किया जाता है। चूंकि इस विभाग में पारदर्शिता जैसा सिस्टम ही नहीं है, इसलिए जो खरीदी या निर्माण होते है वह सीधे आम लोगों की नजर में नहीं आ पाते, इसलिए यहां पर होने वाले निर्माण और खरीदी के मामले में हमेशा भ्रष्टाचार के आरोप लगते है और इन आरोपों को देखते हुए यदि कोई सत्यता का परीक्षण करने के लिए उपरोक्त मामले में सूचना के अधिकार में आवेदन लगाता है तो उसे जानकारी नहीं दी जाती है। जिससे अधिकारियों की नीयत पर सवाल खड़ा होता है।

- वन मंडल ने रेंज में जानकारी के लिए पत्र अंतरित ही नहीं किया...
दक्षिण वन मंडल में विभिन्न जानकारी के लिए एक आरटीआई एक्विविस्ट ने आवेदन लगाया। वन मंडल के लोक सूचना अधिकारी ने संबंधित जानकारी के लिए संबंधित रेंज को पत्र ही अंतरित नहीं किया। जब जानकारी देने का समय सीमा पूरी हो गई तो आवेदक को साधारण डाक से पत्र भेज रहे।
जानकारी देने की जगह किंतु, परंतु का लगा रहे पेंच
इधर पश्चिम वन मंडल में विभाग में हुए निर्माण और खरीदी को लेकर जब आरटीआई में आवेदन लगाया गया तो बिंदुवार आवेदन में किंतु और परंतु का उपयोग कर जानकारी नहीं दी गई। इसमें दो बिन्दुओं में कहा गया कि क्या जानकारी चाहते है स्पष्ट करें, जबकि मांगी गई जानकारी स्पष्ट है।

- सुनवाई दिनांक के बाद भेजा जाता है सूचना पत्र...
वन विभाग में जानकारी समय सीमा में ना मिलने पर  प्रथम अपील की जाती है तो प्रथम अपीलीय अधिकारी भी अज्ञात कारणों से अपीलकर्ता को सुनवाई तारीख के बाद सूचना भेजता है।

- द्वितीय अपील का अवसर ना मिले इसका प्रयास...
वन विभाग में यह कोशिश भी की जाती है कि प्रथम अपील में ही आवेदनकर्ता को इस तरह से उलझा दिया जाए कि वह द्वितीय अपील के लिए राज्य सूचना आयोग तक जाने योग्य ही नहीं बचे।
@साभार  : राष्ट्रीय दिव्य दुनिया 
नवल वर्मा हेडलाइन बैतूल 16 दिसम्बर 2024