(आस्था, विश्वास और सेवा का संगम)

 कांवड़ यात्रा श्रावण (सावन) के पवित्र माह में होने वाली आस्था और सनातन परंपरा अदभुत और अद्वतीय तीर्थयात्रा है, जिसमें भक्त गंगाजल भरकर झारखंड प्रदेश के देवघर में स्थित बाबा बैद्यनाथ मंदिर जाते हैं। हिंदुस्तान में कावड़ यात्रा कई प्रकार की होती है, जिसमे प्रमुख चार प्रकार की कांवड़ यात्राएँ प्रसिद्ध है। इसमें से पहली जो हम सभी करते है वो सामान्य कांवड़ यात्रा। दूसरी खड़ी कांवड़ यात्रा। तीसरी डाक कांवड़ और चौथी दंड लगाकर की जाने वाली कांवड़ यात्रा है। इन कांवड़ यात्राओं के कई कड़े नियम भी जिसे कई श्रद्धालु बड़े ही श्रद्धाभाव से पूर्ण करते है। इस साल यह कांवड़ यात्रा 11 जुलाई से शुरू होकर 23 जुलाई को सावन की शिवरात्रि के दिन पूर्ण होगी। बिहार झारखंड और उत्तरप्रदेश में इन कावड़ यात्राओं का एक अलग ही महत्व है। इसमें हिंदू धर्म को मानने वाले सभी संप्रदायों के साथ साथ सभी जाति-धर्म के लोग बड़े उत्साह से हिस्सा लेते है , विशेषकर बिहारी भाषी पुरुष और महिलाएं अपने ही रंग में नजर आते है। इस यात्रा का सामाजिक और आर्थिक दोनों ही दृष्टि से विशेष महत्व है। यह यात्रा पूरे हिंदुस्तान के करोड़ो श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है। यह कावड़ यात्रा भगवान शिव के प्रति हिंदू श्रद्धालुओं के समर्पण को भी दर्शाती है। इस यात्रा के दौरान कावड़ यात्री मिट्टी, प्लास्टिक एवं मेटल के बने घड़ों में गंगा नदी से पवित्र जल भरते हैं। वे इन घड़ों को बाँस से बनाई गई सुंदर- सुंदर कावड़ के सहारे अपने कंधों पर बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ धारण करते है। सनातन परंपरा के अनुसार कावड़ यात्रा के सभी कड़े नियमों का पालन करते हुए यात्री जोर जोर से बोल बम, बोल बम और हर हर महादेव का जयकारा लगाते हुए अपनी-अपनी कावड़ लेकर पैदल वो भी नंगे पैर चलते हैं, जिसे 'काँवर' भी कहा जाता हैं। यह यात्रा श्रावण मास में विशेष रूप से महत्वपूर्ण होती है, जब लाखों की संख्या में शिव भक्त इस यात्रा को करते हैं श्रावण मास में कांवड़िये इस पवित्र जल को लेने के लिए सुल्तानगंज (बिहार) से अपनी इस यात्रा को प्रारम्भ करते है। पुराणों में लिखी मान्यताओं के अनुसार सुल्तानगंज में गंगा नदी उत्तरायण या उत्तरवाहिनी हो जाती है यानी कि उत्तर दिशा में बहती है। सुल्तानगंज एक विशेष और पवित्र स्थान है, जहाँ गंगा नदी उत्तर दिशा की ओर बहती है, जबकि सामान्यतः यह दक्षिण-पूर्व दिशा में बहती है। गंगा का यह प्रवाह अजगैबीनाथ मंदिर के पास से होता है, इसलिए इसे उत्तरवाहिनी गंगा का उदगम भी माना जाता है। इसी कारण यूपी का सुल्तानगंज भी श्रद्धालुओं के लिए पवित्र स्थान बन गया हैं। यहीं से श्रद्धालु अपने कांवड़ में जल भरते हैं और पवित्र गंगा जल को अपने कंधों पर उठाकर बाबाधाम स्थित बाबा बैद्यनाथ मंदिर तक 110 किलोमीटर पैदल यात्रा के लिए निकलते हैं। कांवड़ यात्रा भक्तों के लिए भगवान शिव के प्रति अपनी आस्था और भक्ति व्यक्त करने का एक अदभुत तरीका है। बैजनाथ धाम 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जहां जलाभिषेक करने के लिए लाखों श्रद्धालु देश भर से यहां आते हैं। बाबा बैद्यनाथ मंदिर को शक्तिपीठ भी कहा जाता है और यहां सच्चे मन से मांगी गई सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। यह मंदिर जो 72 फीट ऊंचा है,देवघर के 22 मंदिरों के परिसर में स्थित है। 

बाबा बैद्यनाथ धाम में सुल्तानगंज से लाकर गंगा जल चढ़ाने के पीछे पौराणिक कथाएं भी है। ऐसा कहा जाता कि भगवान श्रीराम ने सबसे पहले सुल्तानगंज से गंगा जल भरकर देवघर बाबा की यात्रा की थी और इसके बाद से ही इस आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत हुई। एक मान्यता ये भी है कि लंका के राजा रावण ने इस जगह पर रखे शिवलिंग को अपनी पूरी ताकत से दोबारा उठाने का प्रयास किया लेकिन जब रावण से शिवलिंग इंच मात्र भी नहीं हिला तो इसके बाद रावण ने क्रोधित होकर शिवलिंग पर अंगूठा गड़ा दिया और क्रोधित होकर वहाँ से लौट गया। रावण के लौटते ही ब्रह्मा, विष्णु सहित सभी देवी-देवता वहां पहुंचे और बड़े ही श्रद्धा भाव से शिवलिंग की पूजा अर्चना की। मान्यताओं के अनुसार इस तरह बैद्यनाथ धाम में शिवलिंग की स्थापना हुई। बाबा बैद्यनाथ जी के दर्शन कर गंगा जल अर्पण करने के साथ ही कांवड़ियों की पैदल यात्रा संपन्न होती है। इसके बाद देवघर से 42 किलोमीटर दूर दुमका जिले में विराजे बाबा वासुकीनाथ के दर्शन कर इस पूरी यात्रा को यहाँ विराम दिया जाता है। फिर श्रद्धालुगण अपने-अपने साधनों से अपने घरों को लौटते है। 

बोल बम बोल...

- लेखक : राजेश आहूजा, बैतूल