स्वच्छता में नंबर-1 शहर इंदौर के सीएमएचओ ऑफिस में कचरा-गंदगी
इंदौर । लोगों के मर्ज का उपचार करने वाला स्वास्थ्य विभाग (सीएमएचओ ऑफिस) का दफ्तर ही बदहाली में बीमार पड़ा है। यहां छत पर मकड़ियों ने जाले बना लिए हैं। साथ ही कार्यालय परिसर में कचरा-गंदगी फैली पड़ी है। स्वच्छता में छह वर्षों से नंबर-1 शहर के सीएमएचओ आफिस में सफाई का अभाव है। सिर्फ इतना ही नहीं यहां मेंटेनेंस का भी अभाव है। कई ट्यूब लाइटें बंद पड़ी हैं। अलमारियों के दरवाजे भी टूटे पड़े हैं। इनके सुधार पर किसी का ध्यान नहीं है, जबकि करोड़ों रुपये का बजट हर वर्ष यहां अलॉट होता है। जानकारी अनुसार पालिका प्लाजा के पास मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, इंदौर का ऑफिस है। बताया जाता है कि ये ऑफिस अंग्रेजों के जमाने का है। इसकी बनावट देखकर भी ऐसा ही प्रतीत होता है। वर्तमान में इसके परिसर में कचरा और गंदगी का साम्राज्य कायम है। ऐसा प्रतीत होता है कि यहां सफाई हुए महीनों बीत गए हैं, क्योंकि यहां छतों पर मकड़ी के जले बने हुए हैं। ऐसा इसलिए भी हो सकता है कि यहां के चतुर्थ क्लास कर्मचारियों से क्लर्कों का काम लिया जा रहा है। इसलिए सफाई करने वाला शायद कोई नहीं है। समय बीतने के साथ ही मेंटेनेंस नहीं होने के कारण पूरा कार्यालय कबाड़खाने जैसा हो चला है। भारी अव्यवस्थाओं के बीच यहां के कर्मचारी काम करते हैं। इसके बाद भी कुछ भी कहने से बचते हैं। इन सब अव्यवस्थाओं के बाद भी जिम्मेदारों का इस और ध्यान नहीं है या कह सकते हैं कि वे देखकर भी अनदेखा कर रहे हैं।
संपूर्ण जिले के स्वास्थ्य अमले पर सीएमएचओ का नियत्रंण
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी का संपूर्ण जिले के स्वास्थ्य अमले पर नियत्रंण होता है, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि उनका अपने ही विभाग की मेंटेनेंस शाखा पर कंट्रेाल नहीं है। तभी तो ऑफिस में दो वर्ष से किसी भी प्रकार का मेंटेनेंस नहीं करवाया गया है। यहां आवक-जावक शाखा के र्क्लकों की कुसियां भी बेहाल हैं। यहीं की अलमारियों के गेट टूटे पड़े हुए हैं। इस ओर ध्यान देने वाला कोई नहीं है। इसे ऐसा भी कहा जा सकता है कि यहां काम करने वाले अधिकारी इसे देखकर भी अनदेखा कर रहे हैं।
लाखों रुपये सालाना का बजट
जानकारी अनुसार, सीएमएचओ ऑफिस को वरिष्ठ कार्यालय द्वारा लाखों रुपये सालाना का बजट आवंटित किया जाता है। इसके बाद भी विगत दो वर्षों से यहां कोई मेंटेनेंस नहीं किया गया, जिससे ऑफिस जर्जर होता जा रहा है। सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत इस बारे में जानकारी भी दी जा चुकी है। ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि इन लाखों रुपयों का क्या इस्तेमाल किया गया।