जयपुर । राजस्थान भाजपा गुटबाजी के कारण संकट के बुरे दौर से गुजर रही है। अधिकांश भाजपा कार्यकर्ताओं का मानना है कि पार्टी अभी भी चुनावी मोड में नहीं आ सकी है। जबकि चुनाव में 3-4 महीने ही शेष हैं। प्रदेश के ज्यादातर नेता अपनी-अपनी ढपली और अपना-अपना राग की तर्ज पर आंदोलन, प्रदर्शन एवं प्रेसवार्ता करने में जुटे हैं। कार्यक्रमों में से अधिकांश लोग दूरियां बना रहे हैं। हालांकि बतौर राजनीतिक पार्टी कांग्रेस की स्थिति भी कमोबेश ऐसी ही है। लेकिन, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत निजी तौर पर चुनावी तैयारियों के लिहाज से काफी आगे निकल चुके हैं। उनका पूरा फोकस अपनी ब्रांडिंग पर है। वे यह संदेश देने में भी कामयाब रहे हैं कि पूर्व सीएम सचिन पायलट भी उनके आगे बहुत ज्यादा कुछ नहीं कर पा रहे हैं और भविष्य की रणनीति को लेकर भ्रमित हैं। उनके समर्थक और कार्यकर्ता भी असमंजस में हैं।
इधर, राजस्थान भाजपा में गुटबाजी खत्म करने के लिए दिल्ली तक मंथन चल रहा है। कयास लग रहे हैं कि पार्टी आलाकमान के ना चाहते हुए भी भाजपा के पास पूर्व सीएम वसुंधराराजे को इलेक्शन कैंपेन कमेटी चेयरमैन के नाते आगे करने के अलावा फिलहाल कोई विकल्प नहीं दिख रहा है। राजे समर्थकों का दावा है कि राजस्थान में मुख्यमंत्री के लिए उछलकूद करने वाले ज्यादातर नेता बतौर मंत्री अथवा संगठन पदाधिकारी वसुंधराराजे के नेतृत्व में काम कर चुके हैं। इसकारण उनसे बेहतर कोई विकल्प नहीं हो सकता। लेकिन, पार्टी हाईकमान को जो भी निर्णय लेना है। वह जल्दी लिया जाना चाहिए। क्योंकि अब धरातल पर काम करने का वक्त बहुत कम बचा है। इसकारण माना जा रहा है कि अगले एक महीने में भाजपा के राजस्थान प्रभारी, इलेक्शन कैंपेन कमेटी की एक साथ घोषणा करने के साथ ही संगठन महामंत्री भी बदले जा सकते हैं। हालांकि चर्चाएं मौजूदा प्रदेशाध्यक्ष सी.पी. जोशी को भी बदलने की हैं। कहा जा रहा है कि जिस उद्देश्य के साथ इन्हें अध्यक्ष बनाया गया था। उस पर जोशी खरे नहीं उतरे हैं। लेकिन, भाजपा के ही कुछ अन्य लोगों का तर्क है कि ठीक चुनाव के मौके पर प्रदेशाध्यक्ष बदलना संभव नहीं है।
भाजपा संगठन से जुड़े लोगों का तर्क है कि चित्तौड़गढ़ सांसद सीपी जोशी को प्रदेश अध्यक्ष इसकारण बनाया था कि वे सभी को साथ लेकर चले और पार्टी में गुटबाजी खत्म हो जाएगी। लेकिन, पिछले दो-तीन महीनों में वे ऐसा कोई प्रभावी कदम नहीं उठा सके। ना ही कोई प्रभाव छोड़ सके। बल्कि कई लोग उन पर हावी होते या मनमानी करते हुए दिखाई दे रहे हैं।
ऐसी ही स्थिति पूर्व मंत्री और नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ की दिख रही है। वे अब खुद मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल हो गए हैं। उन्हें लग रहा है कि अगर इस बार मुख्यमंत्री नहीं बने तब आगे फिर शायद ही सीएम बनने का मौका मिले। इसलिए वे पार्टी नेताओं की एकजुटता में कम ही रुचि ले रहे हैं। राज्यसभा सांसद डॉ. किरोड़ी लाल मीणा, पूर्व केंद्रीय मंत्री सिंह राज्यवर्धन राठौड़ समेत कई नेता अलग सुर में चुनावी राग अलाप रहे हैं।