विदेश से मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्रों को केंद्र ने दी राहत
नई दिल्ली । केंद्र सरकार ने दिए आदेश में कहा है कि भारतीय छात्र जो अपने अंडर ग्रेजुएट मेडिसिन कोर्स के अंतिम वर्ष में थे, (कोरोना महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते भारत लौट आए थे) और अपनी पढ़ाई पूरी कर ली है, जिन्होंने संबंधित मेडिकल यूनिवर्सिटी या कॉलेज से, 30 जून को या उससे पहले पाठ्यक्रम पूरा करने का प्रमाण पत्र हासिल कर लिया है, उन्हें विदेशी चिकित्सा स्नातक परीक्षा में बैठने की अनुमति होगी।
भारत से हर वर्ष लाखों छात्र मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए विदेशों में जाते हैं। इनमें से ज्यादातर पूर्व सोवियत यूनियन के देशों या चीन जाते हैं। दरअसल, विदेशों में एमबीबीएस की पढ़ाई करने के लिए कम खर्चा करना पड़ता है। इसके बाद छात्र जो विदेशों से एमबीबीएस की डिग्री हासिल करते हैं, उन्हें भारत में मेडिकल प्रैक्टिस करने के लिए पहले फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जाम (एफएफजीई) क्वालीफाई करना पड़ता है। जो छात्र इस परीक्षा को क्वालीफाई करते हैं, सिर्फ उन्हें ही भारत में मेडिकल प्रैक्टिस करने का मौका मिलता।
नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशन साल में दो बार फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जाम का आयोजन करता है. हाल ही में ही फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जामिनेशन का आयोजन 4 जून 2022 में किया गया था, जिसके रिजल्ट से चौंकाने वाले आंकड़े सामने निकल कर आए थे। दरअसल, 4 जून को आयोजित इस परीक्षा में कुल 22092 स्टूडेंट ने भाग लिया था, जिसमें से मात्र 2346 ही पास हुए। यानी रिजल्ट 10.61 प्रतिशत रहा। दिसंबर-2021 में आयोजित एफएमजीई परीक्षा का परिणाम 23.91 प्रतिशत रहा था। इससे पहले जून-2020 के सेशन में भी मात्र 9.53 प्रतिशत रिजल्ट रहा था।
औसतन परीक्षा का परिणाम 20 से 22 फीसदी रहता है। यह परीक्षा अपने नियमों के कारण विवादों में रहती है. एबीई, एफएमजीई का आयोजन ऑनलाइन मोड में करता है। परीक्षा के बाद न आंसर-की रिलीज होती है और न ही छात्रों को ऑब्जेक्शन का अवसर दिया जाता है। वहीं इसकी कट ऑफ भी तय है। स्टूडेंट्स को एग्जाम क्वालिफाई करने के लिए 300 में से 150 अंक हासिल करने ही होते हैं। विदेशों में मेडिकल की पढ़ाई का खर्च होना तो एक बात है, सबसे जरूरी बात है मेडिकल एजुकेशन की गुणवत्ता है। भारत में मेडिकल की पढ़ाई काफी कठिन होती है। डॉक्टर बनने की चाह रखने वाले छात्रों की पहली पसंद भारत ही होता है। विदेशों में मेडिकल की पढ़ाई करने जाने वाले ज्यादातर छात्रों में वहीं शामिल होते हैं, जो भारत के मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए होने वाली नीट परीक्षा पास नहीं कर पाते। नीट का आयोजन हर साल नेशनल टेस्टिंग एजेंसी द्वारा कराया जाता है।