भोपाल । मध्यप्रदेश के सबसे बड़े नौरादेही अभयारण्य में प्रवासी पक्षियों की गणना शुरू की गई है। छह राज्यों से आए 22 छात्र और जैव विविधता प्रेमी विशेषज्ञ वनकर्मियों के साथ यहां पहुंचे हैं। अभयारण्य में 11 बर्ड ट्रेल में ये दल पक्षियों की प्रजातियों के साथ ही जैव विविधता वाले वन्यजीव और वनस्पति का भी अध्ययन करेगा और तीन दिन में सर्वे रिपोर्ट तैयार करेगा। नौरादेही अभयारण्य में पक्षियों की चौथी गणना शुरू हुई है। जंगल में जाने से पहले सीसीएफ डीएफओ के अलावा ओरिऐटल ट्रेल्स के पक्षी विशेषज्ञों ने वालंटियर्स को पक्षी गणना जैव विविधता के अध्ययन संबंधी रिपोर्ट तैयार करने ई-बर्ड एप पर पक्षियों के चित्र उनकी आवाज आवास संबंधी जानकारी अपलोड करने का प्रशिक्षण दिया गया है। बताया गया कि इस बार इस अभियान में केवल पक्षी नहीं जैव विविधता भरे नजर आने वाले वन्यजीव और वनस्पति का भी अध्ययन किया जाएगा।  पक्षियों की गणना के लिए छह राज्यों से वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट यहां पहुंचे हैं। नौरादेही अभयारण्य प्रबंधन ने उनका स्वागत किया। वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट वन्यजीवन पर अध्ययन कर रहे हैं। छात्र और वनकर्मी तीन दिन तक नौरादेही अभयारण्य में सर्वे कर अपनी रिपोर्ट तैयार करेंगे। इस दौरान अभयारण्य की मोहली जमरासी जगतराई बरपानी नौरादेही सिलकुही सर्रा रमपुरा उन्हारीखेड़ा और आमापानी बर्ड ट्रेल में पक्षियों की प्रजाति उनकी संख्या और आदत व्यवहार का अध्ययन करेंगे।

गणना और अध्ययन के तरीके बताए
पक्षियों की गणना से पूर्व प्रशिक्षण सत्र भी आयोजित किया गया। इसमें सागर सीसीएफ एके सिंह नौरादेही अभयारण्य के प्रभारी डीएफओ डीएस डोडवे एसडीओ सेवाराम मलिक की मौजूदगी में होशंगाबाद से आए वाइल्डलाइफ एवं पक्षी एक्सपर्ट अमित सांखल्या ने वालंटियर्स को पक्षी व जैव विविधता संबंधी अध्ययन के तरीके उनकी पहचान व रिपोर्ट तैयार करने की जानकारी दी। ई बर्ड एप पर अध्ययन रिपोर्ट अपलोड करने और जंगल में कैंपिंग व सर्वे के दौरान बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में भी बताया।

 ग्रिफॉन पिछले साल भी नौरादेही पहुंचा था
हिमालयन वैली में मिलने वाले ग्रिफॉन को हिमालयनसीस के नाम से भी पहचानते हैं। ये अब नौरादेही को अपना शीतकालीन बसेरा बना चुका है। यह हिमालयन क्षेत्र से अफगानिस्तान तिब्बत और अफगानिस्तान- मंगोलिया तक पाया जाता है। ग्रिफॉन पिछले साल भी नौरादेही पहुंचा था। इस साल फिर दिसंबर में यह अभयारण्य में नजर आया है। मटमैले-भूरे रंग के इस पक्षी के पंख विशाल होते हैं। करीब 80 सेमी आकार वाले इस पक्षी की गर्दन पर रोंएदार छोटे पंख होते हैं। चोंच पतली और आगे से मुड़ी व नुकीली पंजे और नाखून पैने होते हैं। यह सर्दियां बढऩे पर दिसंबर में हिमालय की वादियों से उड़ान भरता है और मैदानी क्षेत्रों में अनुकूलता के आधार पर अपना ठिकाना बनाता है। हिमालयनसीस ऊंचे पहाड़ों पर दरारों के बीच घोंसले बनाता है। अधिकांशत: ये अकेले या छोटे झुंड में उड़ान भरता है। वहीं मैदानी क्षेत्रों में पाए जाने वाले भारतीय गिद्ध का सिर सपाट और गंदा होता है। पंख चौड़े होते हैं लेकिन यह बड़े झुंड में उड़ान भरते हुए मृत जीवों का मांस भी समूह में खाता है।

परदेश से आए परिंदे
नौरादेही अभयारण्य इन दिनों सारस क्रेन क्रौच वूली स्टॉर्क ब्लैक स्टॉर्क ओपन बिल स्टॉर्क कामोरिंक जलकाक या पनकौआ आइबिस हिमालयन ग्रिफॉन के कलरव से गुलजार है। नए साल से पहले इन परिंदों ने छेबला तालाब सहित सर्रा मुहली सिंगपुर रेंज को अपना ठिकाना बनाया है। इनमें से ब्लैक स्टॉर्क और हिमालयन ग्रिफॉन लगभग एक हजार किलोमीटर का सफर कर आए हुए हैं। सर्दियां बढ़ते ही अन्य नए प्रवासी पक्षियों की संख्या बढऩे का अनुमान है। हिमालय पर बर्फ गिरने से ठंड बढ़ गई है इससे बचने के लिए हिमालय के ऊंचे पहाड़ और तराई में रहने वाले पक्षियों का मैदानों की ओर आने का सिलसिला शुरू हो गया है। नौरादेही अभयारण्य में एक पखवाड़े से पक्षी आ रहे हैं। इनमें हिमालयन ग्रिफॉन सारस रेन प्रमुख है। वहीं यूरोपीय मूल का भी ब्लैक स्टॉर्क (कृष्ण महाबक) को भी अभ्यारण्य के तालाबों पर देखा गया है।

अभयारण्य में बनाए गए 11 कैंपस
एसडीओ सेवाराम मलिक ने बताया कि गुरुवार को पक्षी गणना के लिए छह राज्यों की टीम नौरादेही अभयारण्य पहुंच चुकी है। इसमें 30 सदस्य पक्षियों की गणना जैव विविधता व वनस्पति का रिपोर्ट तैयार करेंगे। अभयारण्य में रुकने के लिए 11 कैंपस बनाए गए हैं जिसमें वे तीन दिन तक रह सकेंगे और अभयारण्य का भ्रमण कर रिपोर्ट तैयार करेंगे। अब तक देश के कूनो कान्हा कांजीरंगा मानस करनाला सहित अन्य नेशनल पार्क अभयारण्य में 11 बर्ड सर्वे हो चुके हैं। नौरादेही अभयारण्य पहुंची टीम के सदस्यों का कहना था कि अभी तक पढ़ा था लेकिन यह अभयारण्य जैव विविधता में सबसे समृद्ध है।