भोपाल । अपनी व्यवस्था तो हो गई... भिया ने पहुंचा दी थी... एक-दो क्वार्टर अपने को भी दिलवा दो... चुनावी मौसम में इस तरह की कानाफूसी गली-मोहल्लों से लेकर चौराहों पर डेली ड्रिंकरों के बीच खूब होती रही। निचली बस्तियों में तो कुछ जगह आलम यह रहा कि जो डेली में सफेद का क्वार्टर पीते हैं उन्हें ब्रांडेड शराब के भी दर्शन हो गए। नेताओं के प_ों-समर्थकों के बीच जमकर पेटीबाजी होती रही।
वैसे तो पुलिस प्रशासन से लेकर आबकारी विभाग द्वारा बड़ी संख्या में अवैध शराब का जखीरा पकड़ा जाता है और चुनावी मौसम में धरपकड़ का ग्राफ बढ़ भी जाता है, बावजूद इसके चुनाव लडऩे वाले प्रत्याशियों के समर्थकों-कार्यकर्ताओं द्वारा चोरी-छुपे नए-नए तरीकों से डेली ड्रिंकरों, यानी रोज पीने वालों तक शराब की सप्लाय करवा दी जाती है। शराब कारोबार से जुड़े लोग पेटियां भर-भरकर शराब की तस्करी करते-करवाते हैं। वहीं पीने वाले भी जुगाड़ में रहते हैं कि ये मुफ्त की दारू उन्हें भी गटकने को मिल जाए। चुनाव चाहे पंचायत स्तरीय हो या फिर विधानसभा का, सच्चाई यही है कि हर उम्मीदवार वोटर को अपने-अपने तरीके से प्रभावित करने में जुट जाता है। उम्मीदवार वोट के बदले नोट और शराब का अधिक सहारा लेता है। चुनाव प्रचार के दौरान शराब बांटने का प्रचलन पिछले सालों में काफी बढ़ गया है। वोटर भले ही अपना वोट किसी भी उम्मीदवार को दे, लेकिन वह शराब सबकी चखना चाहता है। उम्मीदवार भी इस बात को भली प्रकार जानते हैं, लेकिन वोटर को लुभाना उनकी मजबूरी है। यही कारण है कि कई उम्मीदवारों ने इस विधानसभा चुनाव में भी पीने वालों के गले जमकर तर करवाए। यही कारण है कि प्रशासन ने मतदान के 48 घंटे पहले से शराब दुकानों में ताले डलवा दिए थे और शुक्रवार शाम 6 बजे के बाद मतदान निपटते ही इन दुकानों के शटर उचकाए गए। लेकिन हैरत की बात यह रही कि निचली बस्तियों की शराब दुकानों में उम्मीद के मुताबिक शराबियों की भीड़ नहीं रही। इसका कारण यही रहा कि इस बार इतनी शराब बांट दी गई कि लोग मयखाना जाना भूल गए और कई के पास एक्स्ट्रा स्टॉक भी भरपूर हो गया। शराब कहां से, कैसे और किस-किस तक पहुंची यह तो शोध का विषय है, लेकिन पीने वालों की चांदी नेताओं ने इस चुनाव में भी करवा दी और इस मयकशी के तगड़े बंदोबस्त के चलते शराब दुकानदार उम्मीद के मुताबिक ग्राहकी को तरस गए। अब इन पीने वालों को अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव का इंतजार है।
लेवल के हिसाब से बंटी...
बताते हैं कि 70 रुपए के क्वार्टर से लेकर 1200-1500 रुपए की बोतल तक बांटी गई। सफेद और लाल की पेटियों की मांग जहां निचली बस्तियों में खूब रही तो ब्रांडेड दारू भी नेताओं के पीने वाले प_ों-कार्यकर्ताओं के बीच खूब खुली। ऊपरी ऑर्डर थे कि लेवल के हिसाब से दारू बांटी जाए। मजे की बात तो यह है कि कुछ लोग ऐसे भी रहे, जिन्होंने कल मतदान के दिन इतनी पी ली कि वोट डालने नहीं जा सके। बताते हैं कि ये लोग वे रहे, जो डेली में सफेद-लाल की पीते हैं, लेकिन उनके हाथ चुनाव के चक्कर में तगड़ी दारू लग गई।
नमकीन बेचने वाले भौचक
शराब दुकानों के बाहर ठेले-गुमटियों पर नमकीन, गिलास बेचने वालों के बीच भी यह चर्चा का विषय रहा कि आज तो अच्छी-खासी ग्राहकी का दिन था, बावजूद इसके पीने वालों का जमावड़ा उम्मीद के मुताबिक कम रहा। वहीं ठेकेदारों का कहना है कि चुनावी दारू का स्टॉक खत्म होते ही एक-दो दिन में फिर से हमारी दुकानें पूर्व की तरह रोशन हो जाएंगी।
चुनावी व्यवस्था में लगने वालों की भी हो गई व्यवस्था
चुनावी व्यवस्था में लगे नेताओं के प_ों-समर्थकों से लेकर अन्य पीने वाले कर्मचारियों की भी व्यवस्था इशारों-इशारों में हो गई। पीने वालों को ठिकाने का पता बता दिया गया और भोजन के साथ-साथ पीने का भी इंतजाम हो गया। सूत्रों की मानें तो इन्हें सफेद का क्वार्टर न थमाते हुए ब्रांडेड बैगपाइपर, इंपीरियल ब्लू, रॉयल स्टैग जैसी महंगी ब्रांडेड दारू तक चखाई गई।
सूने पड़ गए अघोषित अहाते...
पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती की अड़ के चलते सरकार ने भले ही अहातों पर रोक लगा दी हो, लेकिन अघोषित अहाते यानी इन शराब दुकानों के आसपास खाली पड़े मैदानों पर चोरी-छुपे जमकर जाम छलकाए जाते हैं। चुनावी मौसम में इन अघोषित अहातों-मैदानों की भीड़ में भी कमी आ गई। कुल मिलाकर अधिकांश डेली ड्रिंकरों के लिए यह चुनाव आनंदमय रहा।
कई पेटियां मंगवाईं... आधी कर लीं अंटी
उम्मीदवारों के समर्थक-कार्यकर्ता भी कम नहीं। मोहल्ला स्तर के कार्यकर्ताओं ने प्रत्याशी को ज्यादा आंकड़ेबाजी बताकर कई गुना अधिक में दारू की पेटियां मंगवा लीं। ये बात अलग है कि आधी मंगवाने वाले ने ही अंटी कर लीं। इस बात की भनक भेजने वाले को भी होती है, लेकिन चुनाव के चलते उन्हें भी चुप्पी साधे रखना पड़ती है।