बैतूल ।   देश को आजादी दिलाने में बैतूल जिले के लोगों ने हर आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा ही नहीं लिया, बल्कि अपने प्राणों का बलिदान भी दिया है। जिस जंगल सत्याग्रह ने अंग्रेजी हुकूमत की जड़ों को हिला दिया था उसकी मध्य भारत में शुरूआत बैतूल जिले के ग्राम चिखलार से हुई थी। लेखक कमलेश सिंह की पुस्तक सतपुड़ा के गुमनाम शहीद में उल्लेख किया गया है कि वर्ष 1930 में बैतूल के चिखलार से दीपचंद गोठी के नेतृत्व में जंगल सत्याग्रह प्रारंभ हुआ।

कोंवा गोंड ने दिया बलिदान

सातलदेही में बलिदानी मोहकम सिंह की पत्नी मनकी बाई ने इसका नेतृत्व किया। बंजारीढाल में गंजन सिंह कोरकू ने 800 आदिवासियों के साथ जंगल सत्याग्रह किया और ब्रिटिश सेना के साथ 72 घंटे तक रक्त-रंजित संघर्ष किया। इसमें आदिवासी सत्याग्रही कोंवा गोंड का बलिदान हुआ था और 30 आदिवासी घायल हुए थे। आमला विकासखंड में स्थित जम्बाड़ा में अमर सिंह गोंड के नेतृत्व में सत्याग्रह हुआ था और यहां पर पुलिस की गोली से जिर्रा गोंड का बलिदान हुआ था।

वीरांगना बाना बाई के नेतृत्व में हुआ सत्याग्रह

भीमपुर विकासखंड में पार्वती बाई के नेतृत्व में जंगल सत्याग्रह हुआ था और सत्याग्रही गिरफ्तार हुए थे। आमला विकासखंड के बोरदेही के पास स्थित चिखलार में अंग्रेजों की पुलिस और आदिवासियों में भीषण संघर्ष हुआ था। जिसमें रामू गोंड और मकडू गोंड नामक दो आदिवासियों का बलिदान हुआ था। प्रभातपट्टन के मासोद के पास उत्तम सागर स्थान पर वीरांगना बाना बाई के नेतृत्व में जंगल सत्याग्रह किया गया और भैंसदेही विकासखंड के सांवलमेढ़ा के पास स्थित झिरी में जुगरू गोंड और निम्बाजी ने सत्याग्रह किया।

घर-घर तक पहुंचा जंगल सत्याग्रह

प्रभातपट्टन विकासखंड में स्थित खार में राधाबाई के नेतृत्व में जंगल सत्याग्रह हुआ था। स्वतंत्रता के महायज्ञ में कोवां की शहादत ने आग में घी का काम किया। आजादी की आग शोला बनकर पूरे सतपुड़ांचल में धधकने से आदिवासी समुदाय अब आजादी का सही मतलब समझने लगा था। कुर्बानी की कहानी गांव-गांव में सुनाई देने लगी। जंगल सत्याग्रह संदेश घर-घर तक पहुंचने लगा था।

ब्रिटिश फौज से मुकाबला

सैकड़ों आदिवासी नौजवानों, महिलाओं, पुरुषों का बस एक ही संकल्प था कि कोवां के बलिदान को व्यर्थ नहीं होने देंगे। बैतूल के वनवासी स्वतंत्रता आन्दोलन के हर मोर्चे पर ब्रिटिश फौज का मुकाबला करने के लिए तैयार हो गए थे। बैतूल ही नहीं छिंदवाड़ा, मंडला, सिवनी सभी जगह जंगल सत्याग्रह चरम पर पहुंच गया था। 22 अगस्त 1922 को बैतूल जिले के रानीपुर थाना में भीड़ ने घुसकर आग लगा दी थी। इसके बाद 29 अगस्त को सरदार विष्णु सिंह समेत बड़ी संख्या में लोगों को गिरफ्तार भी किया गया था।