हिन्दू पंचांग के अनुसार, हर साल मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव जी की जयंती मनायी जाती है।
शास्त्रों के अनुसार भगवान काल भैरव का जन्म मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर हुआ था। काल भैरव जयंती के दिन भगवान काल भैरव जी की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। काल भैरव ने ब्रह्मा जी का सिर काट दिया था। इसके पीछे एक बड़ी रोचक कथा है। जो पौराणिक शास्त्रों में इस प्रकार मिलती है...
तीनों देवों में हुआ था महानता को लेकर विवाद
शिवपुराण के अनुसार एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश यानी शिव जी तीनों देवताओं में विवाद पैदा हो गया। यह विवाद तीनों में श्रेष्ठ कौन है, इस बात को लेकर था। इस बीच ब्रह्माजी ने भगवान शंकर की निंदा कर दी जिसके चलते भगवान शिव बहुत क्रोधित हो गए।

- काल भैरव ने ब्रह्मा जी से लिया अपमान का बदला...
क्रोध में आकर भगवान शिव ने अपने रौद्र रूप से काल भैरव को जन्म दिया। काल भैरव ने भगवान के अपमान का बदला लेने के लिए अपने नाखून से ब्रह्माजी के उस सिर को काट दिया जिससे उन्होंने भगवान शिव की निंदा की थी। इस कारण से उन पर ब्रह्रा हत्या का पाप लग गया।

- ब्रह्म हत्या के पाप से ऐसे मिली मुक्ति...
ब्रह्रा हत्या के पाप से मुक्ति के लिए भगवान शिव ने काल भैरव को पृथ्वी पर जाकर प्रायश्चित करने को कहा और बताया कि जब ब्रह्रमा जी का कटा हुआ सिर हाथ से गिर जाएगा, उसी समय से ब्रह्रा हत्या के पाप से मुक्ति मिल जाएगी। अंत में जाकर काशी में काल भैरव की यात्रा समाप्त हुई थी और फिर यहीं पर स्थापित हो गए और शहर के कोतवाल कहलाए।