शाहब जाफरी का बड़ा ही प्रसिद्ध शेर है...तू इधर उधर की ना बात कर, ये बता काफिला क्यूं लुटा, मुझे रहजनों से गिला नहीं, तेरी रहबरी पर सवाल है...
बैतूल जिले की वर्तमान राजनीति को लेकर यह शेर सटीक नजर आता है। पूरी राजनीति जन सरोकार और मुद्दों से बाहर हो चुकी है। किसी को इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि बैतूल में रोजगार के क्या साधन होना चाहिए, किसी को इस बात से कोई लेना देना नहीं कि सरकारी अस्पताल में विशेषज्ञ डॉक्टर क्यों नहीं है? किसी को इस बात से भी फर्क नहीं पड़ता कि बैतूल में मेडिकल कॉलेज क्यों नहीं खुल रहा है? बैतूल में कृषि कॉलेज क्यों नहीं खुल रहा? इस बात से भी राजनीति को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है कि जिला मुख्यालय पर जेल की बेशकीमती जमीन औने-पौने में ठिकाने लगा दी गई? इस बात से भी फर्क नहीं पड़ता कि भ्रष्टाचार अपने चरम पर है, अधिकारी बैतूल को चारागाह समझ रहे है और जनता के चुने हुए प्रतिनिधि इन अधिकारियों के साथ दो-दो घंटे बैठने को अपना सौभाग्य मान रहे है। इन अधिकारियों के भ्रष्टाचार को लेकर बोलने पर इनका गला सूखता है। पिछले कई वर्ष से बैतूल-भोपाल फोरलेन पूरा नहीं हो पा रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि कोरोना को बैतूल के गरीबों ने जिस तरह से भोगा है, आर्थिक रूप से लूटा गया है, उन्होंने अपने परिजनों की जान गवाई है उसको भी राजनीति भूल गई है और लोगों को भी भुलाने में लगी है कि उन्होंने क्या-क्या भोगा था!
जो जिले में जनता के वोट से चुने गए है उन्होंने आज तक
किसी कोई सुध तक नहीं ली। हालत यह है कि खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदल रहा है और कोई कहीं पर भोज कराते है तो कोई कहीं और बुलाते है पर कोई यह बताने को तैयार नहीं है कि बैतूल के बेरोजगारों के लिए, बैतूल की आर्थिक उन्नति के लिए, बैतूल की कानून व्यवस्था के लिए उनके पास क्या प्लॉन है और अब तक उन्होंने क्या किया और क्या नहीं किया। सबसे खराब यह है कि बैतूल की राजनीति में जो ट्रेंड चलाया जा रहा है कि चुनाव कितना महंगा होगा और खर्चा कौन करेगा, इससे बैतूल में लोकतंत्र ही खत्म होने का खतरा पैदा हो रहा है। जिस तरह के ट्रेंड राजनीति में लाए जा रहे है उसमें भविष्य में धरमू सिंह और ब्रम्हा भलावी जैसे गरीब तबके के लोग राजनीति में चुनाव तक नहीं लड़ पाएंगे। अब बैतूल जिले की जनता इस बात को क्यों जान और समझ नहीं पा रही कि रुपयों की राजनीति में उनके हक अधिकार भी कहीं न कहीं पीछे छूट रहे है और बैतूल का भविष्य अंधकार में जा रहा है। वहीं अब लोकतंत्र बचाने क्यों ना बैतूल जिले में सिविल सोसायटियाँ सामने आकर हेमंतचन्द्र (बबलू) दुबे की तरह आम मतदाताओं के मध्य जाकर इस अलख को जगाने के लिए बढ़चढ़ कर आगे आएं और एक सार्थक पहल करें ।
नवल वर्मा हेडलाइन 23 सितंबर 2023