विधानसभा चुनाव के नतीजे जब सामने आए तो ऐसा लगा कि सुनामी आ गई और उसने कांग्रेस को तहस-नहस करके रख दिया। जब मतदान हुआ तो अच्छे-अच्छे आंकलनकर्ता भी यह नहीं बता पा रहे थे कि मतदाता क्या कहना चाहता है, लेकिन मौन मतदाता का फैसला जब पढ़ा गया तो ऐसा लगा कि चुनावी राजनीति में भूचाल आ गया और लाड़ली बहना का अंडर करंट इतना जबरदस्त था कि भाजपा की लॉटरी लग गई। इसलिए बैतूल जिले में भी पांचों सीट पर भाजपा चुनाव जीत गई। 
इस विधानसभा चुनाव में राजनैतिक प्रकाण्ड विद्वानो के लगभग समस्त अनुमान और दावे मतदाताओं के मौन के आगे फीके पड़ गए। क्योंकि इस बार मध्यप्रदेश का विधानसभा चुनाव बेहद असमंजस भरा रहा। यहां तक कि बीजेपी को भी मतगणना से पहले इस तरह की धमाकेदार जीत का भरोसा नहीं था। लेकिन बीजेपी को लाड़ली बहना योजनापर जो भरोसा था, वह लोगों में विश्वास की कसौटी पर एकदम खरा साबित हुआ। बैतूल में बीजेपी क्यों जीती और कांग्रेस को इस तरह की करारी हार का सामना आखिर क्यों करना पड़ा यह मंथन का विषय है।
बैतूल जिले में जिस तरह भाजपा ने धमाकेदार रूप से पांच विधानसभा सीटों पर जिस तरह 5-0 से जीत दर्ज करके विगत विधानसभा चुनाव 2013 की यादें ताज़ा कर दी जिसमे उसने कांग्रेस का पुन: सूपड़ा ही साफ कर दिया। बैतूल विधानसभा में भाजपा के हेमन्त विजय खंडेलवाल 15533 , आमला विधानसभा में भाजपा के डॉ. योगेश पंडाग्रे 12118 , भैसदेही विधानसभा में भाजपा के महेंद्र सिंह चौहान 8761, घोड़ाडोंगरी विधानसभा में भाजपा की गंगा सज्जन सिंह उइके 4213 और मुलताई विधानसभा में चंद्रशेखर देशमुख 14842 मतों से जीत दर्ज करने में कामयाब रहे।
मतगणना के पूर्व तक आमतौर पर जिस तरह मतदाता अपना रुख स्पष्ट कर दिया करता था वह इस बार देखने में नहीं आया जिससे राजनैतिक विद्वानो को भी खूब मसक्कत करते देखा गया इससे यह दृष्टिगत होता है कि अब मतदाता भी काफ़ी समझदार हो चुका है और वह प्रलोभन की राजनीति का शिकार नहीं होगा। चूंकि जिले भर की विधानसभा सीटों पर किस स्तर तक कैसे - कैसे लोक लुभावन लालच की चॉकलेट खिलाने और अपने पक्ष में वोट करने को लेकर प्रपंच किये गये थे। बावजूद इसके मतदाताओं ने मौन धारण कर अपना मुखर मतदान किया यह आनेवाले कल के लिये और हिंदुत्व के लिए मील का पत्थर साबित होगा।