बैतूल(हेडलाइन)/नवल वर्मा। बैतूल जिले में अभीं तक किसी भी कांग्रेसी ने भाजपा का दामन नहीं थामा है, जबकि बैतूल जिले में हाल के विधानसभा चुनाव में पांचों सीट हार गई थी। इसके बावजूद अभी तक किसी भी कांग्रेसी का अपनी पार्टी से मोह भंग नहीं हुआ है, जबकि पड़ोसी जिले छिंदवाड़ा में जो कि कमलनाथ का गढ़ कहा जाता है वहां पर आयाराम और गयाराम का खेल पूरी ताकत से चल रहा है। अब बैतूल का कोई भी कांग्रेसी भाजपा का दामन नहीं थाम रहा, यह कांग्रेस की ताकत है या भाजपा की कमजोरी इसको लेकर भी राजनैतिक प्रेक्षकों का अपना-अपना आंकलन है।

अभी कुछ दिनों पहले यह हल्ला था कि बैतूल से भी पूर्व विधायक या विधानसभा चुनाव लड़ चुके प्रत्याशी उल्टी कुलाटी मार सकते है, लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हुआ है। हालांकि कांग्रेस में अंतरकलह में कहीं कोई कमी नहीं आ रही है। इसके प्रमाण है कि कांग्रेस के अंदरूनी खटपट को लेकर आए दिन कथित मीडिया में प्रायोजित खबरें भी आते रहती है। उनमें 5 सीट हारने के बाद कही कोई कम नहीं आई है। आपस में अंतरद्वंद को लेकर कांग्रेसियों में टैलेंट और जोश की कहीं कोई कमी नजर नहीं आ रही है। बैतूल में कोई भी कांग्रेसी अभी तक भाजपा ज्वाईन नहीं किया है, इसको लेकर कहा जा रहा है कि बैतूल के भाजपा के जो रणनीतिकार और कर्णधार है, वे इतने सक्षम नहीं है कि बैतूल की कांग्रेस में कोई बड़ी तोड़-फोड़ करवा किसी नामचीन चेहरे को भाजपा ज्वाईन करवा सके। कथित मैनेजमेंट गुरू का मैनेजमेंट भी इस मामले में उन्हें टोटल फेल नजर आता है।
वहीं भाजपा के शुभचिंतकों का कहना है कि चुनाव में जिस तरह की स्थितियां बैतूल लोकसभा क्षेत्र में है, उसे देखते हुए हमें कांग्रेसी को अपने लाने की जरूरत नहीं है। वे तो तंज में कहते है कि बैतूल में कांग्रेस के नामचीन चेहरों के पास जिस तरह का टैलेंट है। वैसे टैलेंट की फिलहाल हमारी पार्टी को जरूरत नही है। खैर जो भी हो, लेकिन विधानसभा चुनाव के बाद से ही लगातार कयास थे कि कुछ नामचीन चेहरे कांग्रेस को टाटा बाय-बाय बोलकर अपने अच्छे भविष्य की तलाश में भाजपा की ओर रूख कर सकते है।
पार्टी भले ही नहीं छोड़ रहे, लेकिन पार्टी के भले के लिए सडक़ पर लड़ भी नहीं रहे
बैतूल में कांग्रेस में जो स्थिति है, उसमें भले ही कोइ्र्र कांग्रेसी भाजपा में नहीं जा रहा हो, लेकिन वह कांग्रेस की बेहतरी के लिए या जनता के हित के लिए सडक़ पर उतरकर लड़ भी नहीं रहे। जबकि ऐसे कोई मुद्दे है, जिस पर जनता के हित में बड़ी लड़ाई लड़ी जा सकती है। सबसे बड़ी बात यह है कि यदि पिछला विधानसभा कांग्रेस की टिकट पर लडऩे वाले पांचों उम्मीदवार कमर कस ले और स्वयं के चुनाव में जितनी मेहनत की थी, उसका यदि 50 फीसदी भी मेहनत कर ले तो लोकसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार के लिए चुनाव जीतना मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि जनता में नाउम्मीदी है।
नवल वर्मा हेडलाइन बैतूल 02 अप्रेल 2024