बैतूल (हेडलाइन)/नवल वर्मा। श्रीराम कथा हमारे जीवन चरित्र को सुधारने की प्रयोगशाला है। राम चरित्र के आलोक में मानव दैवी गुणों का संकलन कर सकता है।समाज के सर्वांगीण विकास का दर्पण है राम चरित मानस। उक्त उद्गार टैगोर वार्ड में जिला पंचायत सदस्य एवं उद्योगपति राजा ठाकुर के निवास पर किलेदार एवं परिहार परिवार द्वारा आयोजित भव्य श्री राम कथा महोत्सव के सप्तम दिवस प्रयाग राज से पधारे हुए रामायण भागवत गीता एवं सनातन ग्रंथ के विलक्षण व्याख्याकार मानस महारथी पं. निर्मल कुमार शुक्ल ने विशाल श्रोता समूह के समक्ष प्रकट किया। 
आज भरत चरित्र की मार्मिक व्याख्या करते हुए आपने कहा कि वर्तमान में जो भ्रातृप्रेम दिख रहा है वह राम और भरत जैसे भाइयों के कारण है। अगर राम और भरत ने वंधु प्रेम की आधारशिला न रखी होती तो आज एक माता के गर्भ से दो भाई नहीं अपितु दो हिस्सेदार प्रकट होते और माता के एक एक स्तनों का बंटवारा कर लेते। 
विद्वान वक्ता ने कहा कि अयोध्या का राज्य देवदुर्लभ था इन्द्र इस विशाल साम्राज्य को देख कर ईर्ष्या करते थे और कुबेर यह वैभव देखकर लज्जित हो जाते थे।  किन्तु इन दोनों भाइयों ने इस वैभवशाली राज्य को एक फुटबॉल बना दिया।एक तरफ भगवान राम ने उस पर ठोकर मारा तो दूसरी तरफ भरत ने भी ठुकरा दिया। परिणामस्वरूप यह राज्य चौदह वर्ष तक इधर उधर लुढ़कता रहा। राम वनवास के बाद पिता की मृत्यु के पश्चात जब भरत अयोध्या आए तो पिता के समस्त मृत्यु संस्कारों से निवृत्त होकर एक रात व्याकुल मन से अकेले ही अवध की गलियों में भटक रहे थे। अयोध्या के सिंहद्वार पर एक देवी रो रही थी, भरत ने आश्चर्य से निकट जाकर पूंछा कि देवी आप कौन हैं क्या आपके भी राम वन चले गए हैं। रोती हुई देवी ने कहा कि मैं अयोध्या की राज्यलक्ष्मी हूं बहुत दिनों से अभिलाषा थी कि कभी श्री राम राजा बनेंगे तो मैं उनके गले में माला डाल कर धन्य हो जाऊंगी। किंतु अब राम की जगह तुम हो, आओ मुझ राज्यलक्ष्मी का वरण करो। मैं माल्यार्पण करूं,  तुम अयोध्या के राजा बन जाओ। भरत ने कहा देवी आप नेत्र बंद करो मैं अभी राम को बुला देता हूं फिर उनके गले में माला डाल दो। राज्य लक्ष्मी ने प्रसन्न होकर नेत्र बंद किया। एकाएक भरत भाग चले, लक्ष्मी ने नेत्र खोले उधर भरत बोले देवी ऐसे ही हांथ में माला लेकर सिंह द्वार पर 14 वर्ष खड़ी रहो, जब भगवान श्री राम आ जाएं तो माल्यार्पण करके धन्य हो जावो। 
माताओं गुरु वशिष्ठ मंत्री वर्ग सबने राज्य लेने का आग्रह किया, किन्तु भरत ने सविनय ठुकरा कर चित्रकूट की ओर प्रस्थान किया। भगवान राम को अयोध्या लौटाने का बहुत प्रयास किया किंतु धर्मावतार राम ने स्वीकार नहीं किया।  अंततः श्री राम की पादुका लेकर भरत अयोध्या आ गये। सिंहासन पर उन पादुकाओं का राज्याभिषेक हुआ तथा पादुकाओं की क्षत्रछाया में अभूतपूर्व संयम का पालन करते हुए अवध वासियों ने 14 वर्ष का काल व्यतीत किया।
इस कथा महोत्सव में नगर तथा क्षेत्र के प्रबुद्ध लोगों का विशाल समुदाय एकत्र हो रहा है,  4 घंटे मंत्र मुग्ध भाव से लोग कथा की गंगा में गोता लगा रहें हैं। आयोजक राजा ठाकुर एवं अरुण सिंह किलेदार ने महराज श्री का पुष्पहार द्वारा स्वागत किया। प्रदीप सिंह किलेदार, राजेन्द्र सिंह किलेदार, राघवेन्द्र सिंह, आशू सिंह किलेदार व पिंटू परिहार, ऋषीराज सिंह परिहार ने समस्त धर्म प्रेमी सज्जनों देवियों से अधिकाधिक संख्या में पधारकर पुण्य लाभ अर्जित करने का आग्रह किया है।
यह कथा गंगा दि 7 मई तक दोपहर 3:30 से 7:30 तक प्रवाहित होगी।
नवल वर्मा हेडलाइन बैतूल 05 मई 2024