बैतूल(हेडलाइन)/नवल वर्मा। गरीब आदिवासी के साथ किस तरह से छल प्रपंच हुआ और राजस्व रिकार्ड में किस तरह से उनके साथ राजस्व के कर्मचारियों ने ही धोखाधड़ी की जिसका जीता जागता प्रमाण गोराखार के केजा आदिवासी का परिवार है। इनकी पैतृक जमीन पर राजस्व अधिकारियों की जांच के अनुसार ही ग्राम पंचायत गोराखार सरपंच महेश रावत के भाई देवेन्द्र पिता शंकरदयाल का बेजा कब्जा है! उक्त जमीन केजा ने 1967 में 20 जुलाई 1967 को गोराखार के ही एक अन्य आदिवासी छन्नू वल्द भूरा आदिवासी से 200 रूपए में क्रय की थी। इसकी बकायदा रजिस्ट्री का राजस्व रिकार्ड है। उस समय इस जमीन का खसरा नंबर 159/20 हुआ करता था। जो अब खसरा नंबर 280 कहलाता है। खसरा नंबर 159/20 का नया खसरा नंबर 280 हुआ, इसका प्रमाण भी 1968-69 के नगरीय तथा नगरोत्तर क्षेत्र के लिए अधिकार भू-अभिलेख में स्पष्ट रूप से लिखा हुआ। इस भू-अभिलेख पत्रक में छटवें नंबर पर साफ अक्षरों में दर्ज है कि 159/20 रकबा 0.073 हेक्टेयर जमीन का खसरा नंबर 280 हो गया है। इसके कॉलम 12 में भी इस बात की पुष्टि इससे होती है कि विलेख द्वारा छन्नू से 200 रूपए में 20 जुलाई 1967 को खरीदा गया है। इससे साफ है कि 2004 में फौतीनामांतरण के बाद जो केजा के वारसान अंच्छाराम, पंचम आदि की बही बनाई गई, उसमें जो खसरा नंबर 280 गायब कर दिया गया? वह एक सुनियोजित षडय़ंत्र था और इस षडय़ंत्र का खुलासा 1967 की रजिस्ट्री और 1968-69 का भू-अभिलेख करता है। 
गौरतलब रहे कि इस खसरा नंबर 280 की जमीन की 0.073 हेक्टेयर जमीन पर जनसुनवाई में हुई दो बार हुई शिकायत में दोनों बार हुई जांच में पाया गया कि इसमें देवेन्द्र पिता शंकरदयाल का बेजा कब्जा है और उसने वहां स्थाई निर्माण कर रखा है और इसी जमीन पर बने गृह नंबर 24 को पंचायत के नामांकन में 2024 में सरपंच महेश रावत ने अपना पता बताया है। मतलब साफ है कि गरीब आदिवासी के साथ धोखाधड़ी में इनकी भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता। इसे पूरे मामले में उच्च स्तरीय जांच और बकायदा दल बनाकर होना चाहिए, जिससे कि गरीब आदिवासी के साथ न्याय हो सके?
नवल वर्मा हेडलाइन बैतूल 10 मई 2024