- दस्तावेज प्रमाणीकरण और जनसुनवाई की जांच रिपोर्ट के बावजूद भी गरीब आदिवासी की जमीन से नहीं हटाया जा रहा कब्जा ,


- राजस्व के अधिकारी और कर्मचारियों के फर्जीवाड़े की वजह से आदिवासियों के साथ खुला अन्याय


बैतूल(हेडलाइन)/नवल वर्मा । ग्राम पंचायत गोराखार के सरपंच महेश रावत ने अपने सरपंच चुनाव के नामांकन में जिस गृह नंबर 24 को अपना पता ठिकाना बताया है। वह आवास जिस खसरा नंबर 280 की जमीन पर बना हुआ है। उस जमीन पर उनके भाई देवेन्द्र शंकरदयाल का राजस्व विभाग की जांच रिपोर्ट के अनुसार ही अनाधिकृत कब्जा है? जब इस जमीन को लेकर राजस्व रिकार्ड की जांच पड़ताल की गई तो यह सामने आ रहा है कि इस जमीन के वास्तविक भू-स्वामी केजा आदिवासी के वारसान है। जिन्होंने जनसुनवाई में दो बार इनका कब्जा हटाए जाने के लिए शिकायत की, लेकिन जांच के उपरांत भी सरपंच के प्रभाव की वजह से कोई कार्रवाई नहीं हुई? पूरे मामले में यदि देखा जाए तो राजस्व के अधिकारियों द्वारा किए गए राजस्व रिकार्ड में घालमेल की वजह से वास्तविक भू-स्वामी आदिवासी परिवार को उसका कब्जा नहीं मिल पा रहा है? सबसे बड़ी बात यह है कि आदिवासी के नाम पर राजनीति करने वाले और वोट लेने वाले इस पूरे मामले में चुप्पी साधे हुए है?

- इस तरह से 1950 से लेकर वर्तमान तक तारीख के अनुसार समझे कि किस तरह से हड़पी गरीब आदिवासी की जमीन...
1 - गोराखार में खसरा नंबर 159 में रकबा 5.04 एकड़ भूमि पर 1956 के पांच सालाना खसरा के अनुसार 1950-51 से सेवाराम पिता सितोबा का आधिपत्य है और वे ही भू-स्वामी है। 
2 - सेवाराम सितोबा ने 16 जून 1956 को गोरेलाल पिता गुरूदयाल निवासी बैतूलबाजार को 5.04 एकड़ में से 4.86 एकड़ जमीन की रजिस्ट्री 400 रूपए के विक्रय पर की थी। 
3 - 1956-57 की नामांतरण पंजी (अधिकार अभिलेख) कॉलम 10 में लिखा गया है कि गोरेलाल ने सेवाराम ने 400 रूपए में खरीदा बैनामा दिनांक 16 जून 1956 के अनुसार खसरा 159/1 हो गया। 
4 - 1960-61 के नामांतरण पंजी या अधिकार अभिलेख में कॉलम 10 में दर्ज है कि गोरेलाल पिता गुरूदयाल से खसरा नंबर 159/1 में से 0.073 हेक्टेयर भूमि छन्नू वल्द भूरा आदिवासी निवासी गोराखार द्वारा  01 रूपए के स्टॉम्प पर बेनामा पंजीयन 17 सितम्बर 1960 को किया गया, जो नया खसरा नंबर 159/20 हो गया।
5 - 1969-70 के नामांतरण पंजी या अधिकार अभिलेख कॉलम 10 में दर्ज है कि केजा वल्द नंदा ने छन्नू पिता भूरा से 0.073 हेक्टेयर भूमि खरीदी। 
6 - वर्ष 1979-80 के फौतीनामांतरण के अनुसार खसरा नंबर 159/20 जो कि खसरा नंबर 280 हो गया। उसमें केजा वल्द नंदा के वारसान पंचम, अंच्छाराम और धुर्रू का राजस्व रिकार्ड में दर्ज किया गया। 
7 - खसरा नंबर 280 जिसमें केजा वल्द नंदा के वारसानों का नाम फौतीनामांतरण में दर्ज किया गया था। उनकी जब 2004 में बही बनाई गई तो खसरा नंबर 280 ही बही से गायब कर दिया गया। 
8 - इस जमीन पर देवेन्द्र पिता शंकरदयाल के कब्जे को लेकर पंचम आदिवासी सहित अन्य ने जब कलेक्टर की जनसुनवाई में दो बार अलग-अलग तारीख में शिकायत की तो आरआई, पटवारी और ग्राम कोटवार ने मौका मुआयना, पंचनामा और जांच रिपोर्ट में बताया कि उक्त जमीन केजा पिता नंदा आदिवासी के वारसान पंचम, अंच्छाराम आदि के नाम से राजस्व रिकार्ड में दर्ज है और देवेन्द्र का अनाधिकृत कब्जा है। 
9 - विगत पंचायत चुनाव में जब महेश रावत ने सरपंच के लिए नामांकन दाखिल किया तो उन्होंने जिस गृह नंबर 24 को अपना निवास बताया वह इसी खसरा नंबर 280 मेंं बना हुआ भवन है! यह भी अपने आप में एक बड़ा फर्जीवाड़ा है?
नवल वर्मा हेडलाइन बैतूल 11 मई 2024