हिवरा / आठनेर (हेडलाइन)/नवल वर्मा । शासकीय दस्तावेजों के अनुसार अतिप्राचीन सिद्धस्थली श्री महावीर का देवस्थान हिवरा के नाम से दर्ज है जिसमें गर्भगृह के समीप आखिर किसकी अनुमति से सामुदायिक भवन बनाया गया! यह गहन और सूक्ष्म जाँच का विषय है? गौरतलब है कि इस देवभूमि को तहस - नहस करने में लगे गोवर्धन राने के पिता पूर्व में पटवारी रहकर सेवानिवृत्त हो चुके हैं उनपर लोगों के आरोप है कि उन्होंने अपने अनुसार कभी भी, कहीं भी, कुछ भी फेरबदल करवा दिया गया जो कि आज तक लोगों को दिग्भ्रमित करता जा रहा है वास्तविकता में ऐसे आरोप जानकार लोग ही दबी जबान में कहते हुए सुनाई दे रहे हैं। आम लोगो का कहना है कि इस पवित्र धार्मिक स्थल पर नेतानुमा ठेकेदार और मंडल अध्यक्ष की मिलीभगत से जिस तरह से तात्कालीन विधायक ने आखिर क्या सोचकर और क्यों कराया था देवभूमि पर अपनी निधि देकर अनाधिकृत रूप से सामुदायिक भवन के नाम पर निर्माण! इसकी भी सूक्ष्मता से जाँच नितांत आवश्यक है?

- जिम्मेदारी लेने वाले पुजारी को नहीं दे रहे मानदेय...


श्री महावीर देवस्थान हिवरा के लिये पूर्व में जिले के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार उन्होंने यहाँ के जिम्मेदार एक व्यक्ति विशेष को ऐसा कहा था कि प्रतिमाह पुजारी का मानदेय वह उनसे लेकर पंडित का भुगतान कर दिया करें। लेकिन लगभग 09 महीने से जिम्मेदारी लेने वाले तरुण साकरे ने पुजारी के मानदेय का भुगतान नहीं किया है। लोगों का आरोप है कि अनाधिकृत रूप से आठनेर और हिवरा में वोटर होकर फर्जी अध्यक्ष बने बैठे तरुण साकरे द्वारा पंडित का मानदेय तक नहीं दिया गया है, वहीं देवस्थान में लगी दानपेटी का दान का रुपया भी निकालकर वह अपने साथ ले जा चुका है। जिसको लेकर ग्रामीणों का कलेक्टर से आग्रह है कि उक्त अव्यवस्था को सुधारकर देवस्थल को संरक्षित करने का कष्ट करें।

- सत्य और वास्तविकता सबके सामने आना ही चाहिए...


बताया गया कि इस पुरातन सिद्धस्थल की देवभूमि को लेकर वर्षों से इन नेताओं की गिद्धदृष्टि लगी हुई थी जिसे वे एक - एक करके छिन्न - भिन्न करने में लगे हुए हैं। जिसको लेकर उपलब्ध दस्तावेजों के आधार पर यदि जाँच की जाये तो सब दूध का दूध और पानी का पानी होकर सबके सामने आ जावेगा। इस पवित्र प्राचीन देवभूमि और यहाँ निर्मित मंदिर को लेकर लाखों लोगों की आस्था जुड़ी है वहीं भक्तों तथा ग्रामीणों और अपीलकर्ता-शिकायतकर्ताओं ने इसके सभी सत्य और वास्तविकता सबके सामने लाने के लिए कमर कस ली है उनका कहना है कि 1919-20 के दस्तावेज मिशलबंदी के अनुसार जो लिखा गया है उसके अनुसार यह देवभूमि मॉफ़ी औकाफ़ के अन्तर्गत रखी गई है और भारत सरकार तथा मध्यप्रदेश शासन के गजट नोटिफिकेशन के आधार पर यह सिद्धपीठ होकर स्वयं-भू न्यास की श्रेणी में ही है। फिर इसे अपने अधिकार से वंचित करने के लिए कौन किस स्तर तक कूटरचना कर रहा है, यह भी सबके सामने आना नितांत आवश्यक हो गया है। वहीं समस्त हिन्दुओं, जागरूक नागरिकों और आस्थावान भक्तों का जिलाधीश से आग्रह है कि उक्ताशय में दस्तावेजों के आधार पर अतिशीघ्र यथोचित कार्यवाही सुनिश्चित की जावे।
नवल वर्मा हेडलाइन बैतूल 11 मार्च 2024